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________________ कृतिने मान्य शब्दस्वरूपोथी ज रजू करवानुं इष्ट नहीं ? अंग्रेजी भाषामां तो शेक्स्पिअर पण शाळाकक्षाए आधुनिक लेबासमां ने संक्षिप्त रूपे रजू थाय छे. आपणे मध्यकालीन साहित्यने पण थोडा संमार्जन-संपादनपूर्वक न मूकवू जोईए ? अलबत्त, मध्यकालीन साहित्यनी मध्यकालीनता नष्ट न थाय एनी काळजी राखवी जोईए. वधारे जूनां के ग्राम्य उच्चारणरूपोने स्थाने पाछळना समयनां उच्चारणरूपो स्वाकारी शकाय, परंतु मध्यकालीन शब्दोने स्थाने अर्वाचीन शब्दो, भरणुं न करी शकाय. दुर्बोध रहेता अंशोने छोडी दई शकाय, पण अणसमजमां कंई अगत्यनुं नीकळी न जाय एनी काळजी राखवी जोईए. सरेराश शिक्षक सहेलाईथी गति करी शके अने विशाळ विद्यार्थीवर्गनुं मन जेमां लागी शके एवां मध्यकालीन कृतिओनां संपादन-रजूआत होवां जोईए. आ अधिकार गमे ते व्यक्तिने न ज होई शके, ए काम ए माटेनी सजता अने सूझ धरावती व्यक्तिने हाथे ज थवानो आग्रह राखवो जोईए. कॉलेज अने युनिवर्सिटीकक्षाए अलबत्त मध्यकालीन कृतिओनी शास्त्रीय रीते संपादित थयेली अधिकृत वाचनाओ ज नियत करवी जोईए. कॉलेजकक्षाए मध्यकालीन साहित्यना एक पूरा प्रश्नपत्रमा काप न ज मूकी शकाय. ए पगलुं तो मध्यकालीन साहित्यनी विशाळताथी आपणे बेखबर छीए एम ज बतावे. मध्यकालीन साहित्याभ्यासने सांस्कृतिक अभ्यास साथे सांकळी एने जीवंत बनाववो जोईए, अने मध्यकाळना नानामोटा सर्व साहित्यप्रवाहोनी अभिज्ञता केळवाय एवो प्रयत्न करवो जोईए. पांच-छ मोटा कविओना अभ्यासमां ज मध्यकालीन साहित्य सीमित थई जाय छे ए निवार, जोईए. आम करवा जतां कदाच एक प्रश्नपत्र पण ओछु पडे एवो संभव छे. तो ए माटे पण कंईक व्यवस्था विचारवी जोईए. पण मध्यकाल न साहित्यनी विशिष्ट तालीम पामेलो एक नानकडो वर्ग आपणे ऊभो नहीं करी शीए तो उपर सूचवेली व्यवस्थाओ पार पडवा संभव नथी. जेमनी पासे संस्कृत-प्राकृत ए पूर्वपरंपरानुं पण ज्ञान छे एवी मध्यकालीन साहित्यनी पारंगत पेढी तो हवे लुप्त वामां छे, नव-अभ्यासीओ घणा ओछा प्राप्त थई रह्या छे, एमनी सज्जता पांखी पडी रही छे - ऊणी ऊतरी रही छे ने सूंठने गांगडे गांधी गणाई जवाय एवी स्थिति प्रवर्तवा मांडी छे. विदेशोमां मध्यकालीन गुजराती साहित्यकृतिओनां संपादनो थाय छे, मध्यकालीन परंपराओ विशे परिसंवादो योजाय छे अने मध्यकालीन साहित्यना अभ्यासनी सगवडो पण ऊभी थाय छे त्यारे आपणे आपणा आ समृद्ध वारसा परत्वे जाणे उदासीन छीए. हजु तो हस्तप्रतभंडारोमां अभ्यासीओनी राह जोतुं विपुल साहित्य पडेलु छे. एनो उद्धार कोण करशे ? आनो कंईक नक्कर उपाय आपणे विचारवो जोईए. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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