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________________ याद आवे छे : "तमे नवीन कविओनुं ज वाचन करो छो. एथी बहु तो आ जमानानी काव्यप्रतिभाना अनुयायी (कॅम्प - फॉलोअर) बनी शको तमे जो नरसिंह, प्रेमानंद, अखो, दयाराम बराबर वांची शको तो सालं. अर्वाचीनमां ठाकोर, कान्त अने न्हानालाल . [२४] मध्यकालीन कविता बने तेटली काव्यदोहननां पुस्तको द्वारा वधारे वांचो. " बधा ज लोको मध्यकालीन साहित्यमां रस लेता थाय के एनो अभ्यास करता थाय एवी अपेक्षा राखवानी न ज होय. पण साहित्यना रसियाओ अने अध्येताओ पासे ए ओघुंवत्तुं रहे एवी इच्छा राखवामां कई वधु पडतुं नथी. शिक्षणमां मध्यकालीन साहित्यनुं स्थान टकी रहेवुं जोईए अलबत्त, विवेकपूर्वकनुं अने सूझबूझपूर्वकनुं. हमणां धोरण ११ अने १२नां गुजराती पाठ्यपुस्तकोना मध्यकालीन विभाग जोवानो प्रसंग ऊभो थयो हतो. धोरण ११मामां तो छापभूलो ने पाठदोषो एटलांबधां हतां के आमां भणनार भणावनारनुं शुं थाय ए प्रश्न गंभीरपणे उपस्थित थतो हतो. ते उपरांत बन्ने पाठ्यपुस्तकोमांथी बीजा महत्त्वना मुद्दा पण सामे आवता हता. आपणे मध्यकालीन साहित्यकृतिनी पसंदगी केवी रीते करीए छीए ? जूनां पाठ्यपुस्तकोमांथी कृतिओ उपाडी लईए छीए के नवेसरथी श्रम करीने योग्य कृतिओ खोळीए छीए ? हाथमां आवी ते वाचना स्वीकारी लईए छीए के शुद्ध अने उत्तम वाचनानो आग्रह राखीए छीए ? पसंद करेली कृतिओमां अर्थघटननी कोई मूंझवण नथी एनी आपणे खातरी करी होय छे ? विद्यार्थीओ अने शिक्षकोने भटकवानुं न थाय ए माटे शब्दार्थनी पर्याप्त सहाय पूरी पाडेली होय छे ? में जोयुं के कदाच संपादको पण संतोषकारक रीते अर्थ न करी शके एवी पंक्तिओ आ संपादनोमां नजरे पडती हती, शब्दार्थ ने समजूती क्यांक खोटां हतां, तो आपका जोईता घणा शब्दार्थो अपाया न हता, केटलाक शब्दोनी मध्यकाळी विशिष्ट अर्थछाया पकडी शकाई न हती. आ रीते तो आपणे मध्यकालीन साहित्य प्रत्येनी अभिमुखता नहीं विमुखता केळववामां ज फाळो आपी शकीए. - Jain Education International 2010_03 शाळाकक्षाए मध्यकालीन कृतिओने केवी रीते रजू करवी ए पण हवे नवेसरथी विचारवा जेवुं लागे छे. धोरण १२ना पाठ्यपुस्तकमां राजेनुं एक पद रमेश जानीना ताजेतरमां प्रसिद्ध थयेला संपादनमाथी लेवायेलुं. रमेश जानीए उक्त संपादनमां हस्तप्रतमां जे ग्राम्य उच्चारण- लेखन मळ्यां ते यथावत् राखेल छे. घणा शब्दो एमां एवे स्वरूपे मळे छे जे मध्यकाळमां पण मान्य के व्यापक हता एम न कहेवाय. एथी अवबोधमां मोटो अंतराय ऊभो थाय छे ने अभ्यासीए पण जरा विचार करवा थोभवुं पडे एवं थयुं छे. विशाळ शिक्षकवर्गनुं तो आमां शुं गजुं ? आपणे शब्दार्थनी मदद पूरी पाडीए, पण ए श्रम पछीये शुं ? मूळ कृति साथे मननो मेळ रचावो मुश्केल. आ कक्षाए तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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