SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [११] अर्थोमां पण सरतचूक के गेरसमज काम करी गई होय. मारी सज्जता अने समजनी मर्यादाओ आ कोशरचनामां भाग भजवे ज. एटले आ कोशमां पण केटलुक चकासणीपात्र होवानुं अने विद्वानो एवां स्थानोनी चर्चा करशे तो आपणा मध्यकालीन शब्दार्थज्ञानमां निःशंक वधारो थशे तेमज भविष्यना आथीये सध्धर कोश माटेनो मार्ग रचातो जशे. संशोधनात्मक कोशरचना जेवू आईं मोटुं काम अनेक प्रकारनां साधन, सगवड अने समय विना न थई शके. ए पूरा पाडनार सौनो हुँ ऋणी छु. एमां सौथी मोटुं ऋण डॉ. भायाणीनुं छे. डॉ. भायाणी होय नहीं ने आ अने आवो कोश होय नहीं. एमणे प्राकृत जैन विद्याविकास फंडने आ कोशना प्रकाशनने माटे भलामण करी अने पछीथी पण सतत मार्गदर्शन-मदद पूरां पाड्यां. कोशनुं काम व्यवस्थित शरू करतां पहेला एमां कया प्रकारना शब्दो समाववा ए में एमने पूछीने ज नक्की कर्यु अने पछी मारी सघळी मथामण पछी कूट रहेला शब्दोना अर्थ माटेये वारंवार दोडी गयो एमनी पासे ज. आ छेल्लो कचरो हतो अने एमाथी सार शोधवानुं मुश्केल हतुं (आवा शब्दो एमना हाथमां आववाथी ज हुं कंईक वृथा श्रम करी रह्यो छु एम डॉ. भायाणी मानता थया हता), पण बे स्थाने पण डॉ. भायाणी पासेथी प्रकाश सांपडतो हतो ए मारे माटे घणो मूल्यवान हतो. एक शब्दनो पण निश्चित रूपे साचो अर्थ हाथमां आवे एनो मने रोमांच पण हतो. मनमां तो एवं थतुं के कोशना हजु घणा शब्दो पर डॉ. भायाणीनी नजर पडे तो केवू सारुं ! पण, एमना अत्यंत प्रेमोत्साहभर्या सहकार छतां, मने एमनो वधु समय लेवानो हमेशां संकोच रह्यो. जे शब्दो हुँ एमने तपासवा आपतो ए पण एमने एम कहीने आपतो के तमे बहु श्रम न लेशो, सहजपणे सूझे ए ज नोंधशो.. आम छतां ए घणी वार संदर्भो, आधारो पण पूरा पाडता. पाछळथी कई याद आवे के हाथमां आवे तो तरत फोनथी जणावे. हुं पण चालु कामे कई मूंझवण ऊभी थाय तो एमने फोनथी ज पूछी लउं. आ कोशकार्यमां डॉ. भायाणीनां हूंफाळो साथ ने शीळी छाया में हमेशां अनुभव्यां छे. अंते, आ ग्रंथ- प्रोत्साहक पुरोवचन लखी आपीने एमणे एमना सद्भावने जाणे शग चडावी छे. शब्दार्थ परत्वे अन्य केटलीक व्यक्तिओनी मदद पण मळी छे. मुनिश्री प्रद्युम्नविजयजीने जैन परंपराना शब्दो विशे वारंवार पूछवानुं थयुं अने मुनिश्री शीलचन्द्रविजयजी समक्ष पण पण थोडाक शब्दो मूकेला. डॉ. भोगीलाल सांडेसराने मारी 'आरामशोभा रासमाळा' जोवानी थतां एमणे केटलाक शब्दो विशे नोंध लखी मोकलेली ते आ कोशमां मने काममां आवी ! उकेल मागता शब्दो विशे जे-ते क्षेत्रना अनुभवी ने जाणकार मित्रो-स्नेहीओ साथे तक मळ्ये गोष्ठी करी छे. यज्ञविधिना बेएक शब्दो श्री शरद पंडिते आबाद खुल्ला करी आपेला एनुं सुखद स्मरण अत्यारे थाय छे. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016071
Book TitleMadhyakalin Gujarati Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy