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________________ मृत्यु से ग्रस्त होता है, वह शाश्वत सुख से वंचित ही रहता है किन्तु जो निष्काम होता है, वह न मृत्यु से ग्रस्त होता है और न शाश्वत सुख से दूर।। __ --आचारांग ( १/५/१) जे ममाइअमइं जहाइ, से जहाइ ममाइअं। जो मनुष्य ममत्व-बुद्धि का परित्याग करता है, वही वास्तव में ममत्व का परित्याग करता है। -आचारांग ( १/२/६/६६) से हु दिट्ट भए मुणी, जस्स नत्थि ममाइअं। सच्चा मुनि पाप भीरु होता है, उसमें किसी भी तरह का ममत्व-भाव नहीं होता। -आचारांग ( १/२/६/६६) जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ सिया ? जिसे न कुछ पीछे है और न कुछ पूर्व है, उसे मध्य में कहाँ से होगा ? -आचारांग (१/४/४) अहिलससि चित्तसुद्धि, रजसि महिलासु अहह मूढ़त्तं । नीलामिलिए वत्थम्मि, धवलिमा किं चिरं ठाइ॥ मनशद्धि की अभिलाषा रखते हो और स्त्रियों के प्रति आसक्त बन रहे हो, अहा ! क्या तेरी मुर्खता ! गली में मिले हुए वस्त्र में सफेदाई कितने समय तक स्थिर रहेगी? -आत्मावबोधकुलकम् (२१) न वेरग्गं ममत्तेणं। ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता। -बहत्कल्पभाष्य (३३८५) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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