SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एमेव रूवम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोपरंपराओ। जो रूपों के प्रति द्वेष रखता है, वह भविष्य में दुःख-परम्परा का भागी होता है। -उत्तराध्ययन ( ३२/३३) अधर्म जा जा वच्चई रयणी, न सा पडिनियत्तई। ... अहम्म कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥ जो-जो रात बीत रही है, वह लौटकर नहीं आती। अधर्म करनेवालों की रात्रियाँ निष्फल चली जाती हैं । । -उत्तराध्ययन ( १४/२४ ) छणवंचणेण वरिसो, नासइ दिवसो कुभोयणे भुत्ते । कुकलत्तेण य जम्मो, नासइ धम्मो अहम्मेण ॥ उत्सव न करने से वर्ष नष्ट हो जाता है और कुभोजन से दिन तथा दुष्ट स्त्री से जन्म नष्ट हो जाता है और अधर्म से धर्म ।। -वजालग्ग (८/8) बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्म पडिवजिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिठे, नरए उववजई ॥ जो मुर्ख मनुष्य अधर्म को ग्रहण कर, धर्म को छोड़, अधर्मिष्ठ बनता है, वह नरक में उत्पन्न होता है । __-उत्तराध्ययन (७/२८) जे संखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज दोसाणुगया परज्झा । एए अहम्मे ति दुगुंछमाणे ॥ जो व्यक्ति संस्कारहीन हैं, तुच्छ हैं, परप्रवादी हैं, राग और द्वेष में फंसे हुए हैं, वासनाओं के दास हैं, वे धर्मरहित हैं, अधर्मी हैं । उनसे हमेशा दूर रहना चाहिये । - उत्तराध्ययन (४/१३) [ ६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy