SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संघो गुण संघादो। गुणों का समूह ही 'संघ' है । - रयणसार (१५३) संयम मणसंजमो णाम अकुसलमणनिरोहो, कुसलमण उदीरणं वा। अकुशल मन का निरोध और कुशल मन का प्रवर्तन-मन का संयम है। -दशवैकालिक चूर्णि (१) वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य। माऽहं परेहिं दम्मतो, बंधणेहि वहेहि य॥ उचित यही है कि मैं स्वयं ही संयम और तप के द्वारा अपने पर विजय प्राप्त करूँ। बन्धन और वध के द्वारा दूसरों से मैं प्रताड़ित किया जाऊँ, यह ठीक नहीं है। -उत्तराध्ययन (१९१६) जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए । तस्स वि संजमो सेयो, अदिन्तस्स वि किंचणं ॥ . प्रतिमास हजार-हजार गायें दान देने की अपेक्षा, कुछ भी न देने वाले संयमी का आचरण श्रेष्ठ है । -उत्तराध्ययन (६/४० ) नाणेण य शाणेण य, तवोबलेण य बला निरुभंति । इंदियविसयकसाया, धरिया तुरगा व रज्जूहि ॥ ज्ञान, ध्यान और तपोबल से इन्द्रिय-विषयों और कषायों को बलपूर्वक रोकना चाहिए, जैसे कि लगाम के द्वारा घोड़ों को बलपूर्वक रोका जाता है । -मरण-समाधि ( ६२१) अभयकरो जीवाणं, सीयघरो संजमो भवइ सीओ। प्राणिमात्र को अभय करने के कारण संयम शीतगृहवत् शान्तिप्रद है । -आचाराङ्ग नियुक्ति (२०६) २६२ ] ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy