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________________ अरहते सरणं पवजामि । सिद्ध सरणं पवजामि । साहू सरणं पवजामि । केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवजामि । अहंतों की शरण लेता हूँ । सिद्धों की शरण लेता हूँ। साधुओं की शरण लेता हूँ। केवलि-प्रणीत धर्म की शरण लेता हूँ। -थोस्सामि दण्डक (३) णाणं सरणं मे, दंसणं च सरणं च चरिय सरणं च। तव संजमं च सरणं, भगवं सरणो महावीरो॥ ज्ञान मेरा शरण है, दर्शन मेरा शरण है, चारित्र मेरा शरण है, तप और संयम मेरा शरण है तथा भगवान महावीर मेरे शरण हैं। -मूलाचार ( २/६०) शरीर सरीरं सादियं सनिधणं। शरीर का आदि भी है और अन्त भी । -प्रश्नव्याकरण सूत्र ( १/२) হি अह पंचहि ठाणेहि, जेहि सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽलस्सएण य॥ इन पांचों स्थानों या कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती-१. अभिमान, २. क्रोध, ३. प्रमाद, ४. रोग और ५. आलस्य ।। - उत्तराध्ययन ( ११/३) वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे. पियंवाई, से सिक्खं लधुमरिहई ॥ २४८ ] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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