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________________ अग्नि में तपाये गये और कसौटी पर कसे हुए स्वर्ण की भाँति जो निर्मल, पापशून्य तथा राग-द्वेष एवं भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । - उत्तराध्ययन ( २५/२१ ) जाय रूवं जहामट्ठ, निद्धन्तमल-पावगं । राग-दोस - भयाईयं, तं वयं बूम माहणं ॥ सुव्वयं पत्तानिव्वाणं तं वयं बूम माहणं । जो शुद्ध ती है और आत्मशांति पा चुका है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । - उत्तराध्ययन ( २५ / २२ ) तसपाणे बियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं । ब्राह्मण वही कहला सकता है, जो स्थावर तथा जंगम सभी प्राणियों को भली-भाँति जानकर, मन, वचन और देह से उनकी हिंसा नहीं करता । - उत्तराध्ययन ( २५ / २३ ) कोहा वा जइबा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं ॥ जो क्रोध से, हास्य से, लोभ या भय से अथवा मलिन संकल्प से कभी असत्य नहीं बोलता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । जहा पोम्मं जले जायं, एवं अलित्तं कामेहि, १६४ 1 -- उत्तराध्ययन ( २५ / २४ ) वारिणा ॥ माहणं ॥ जल से लिप्त नहीं होता, सर्वथा अलिप्त रहता है, जिस प्रकार कमल जल में से उत्पन्न होकर भी उसी प्रकार जो संसार में रहकर भी उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । काम - भोगों से नोवलिप्पर Jain Education International 2010_03 वयं बूम जो न सज्जइ भोगेसु तं वयं बूम माहणं । ब्राह्मण वही है, जो त्यक्त काम-भोगों में पुनः नहीं फँसता । - उत्तराध्ययन ( २५/२७ ) - उत्तराध्ययन ( २५ / २६ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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