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________________ शिक्षित घोड़े की क्रियाएँ बेचारा गधा कैसे कर सकता है ? -निशीथ-भाष्य (२६२८) सुहसाहगं पि कज्ज, करणविहूर्णणुवायसंजुत्तं । अन्नायऽदेशकाले, विवत्तिमुवजति सेहस्स ॥ देश, काल एवं कार्य को बिना समझे समुचित प्रयत्न तथा उपाय से हीन किया जानेवाला कार्य सुख-साध्य होने पर भी सिद्ध नहीं होता है । -निशीथ-भाष्य (४८०३) जो जस्स उपाओग्गे, सो तस्स तहिं तु दायव्यो। जो जिसके योग्य हो, उसे वही देना चाहिये । - निशीथ-भाष्य (५२६१) गेलण्णे च बहुतरा संजमविराहणा। रोग हो जाने पर बहुत अधिक संयम की विराधना होती है । -निशीथचूर्णि ( १७५) अकहितस्स वि जह गहवइणो जगविस्सुदो तेजो। अपने तेज का बखान न करते हुए भी सूर्य का तेज स्वतः विश्वविश्रुत है । -भगवती-आराधना (३६१) वेया अहीया न भवंति ताणं । पढ़ लेने मात्र से वेद भी त्राण नहीं होते हैं। -उत्तराध्ययन ( १४/१२) राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ य जाणएसु । वैडूर्य की तरह चमकनेवाली तुच्छ राढ़ामणि-काचमणि है, वह जानने वाले परीक्षकों की दृष्टि में मूल्यहीन है। --उत्तराध्ययन (२०/४२) अणेगछन्दा इह माणवेहि। . इस संसार में मनुष्यों की अनेक प्रकार की इच्छाएँ होती है । -उत्तराध्ययन ( २१/१६) 1८६ ] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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