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________________ है, या बिगड़ रहा है या साथ दे रहा है, उस भाग्य को छोड़ कर धैर्यवान समारब्ध — आरम्भ किये हुए कार्य को कर ही डालता है । - वज्जालग्ग ( ६ / १६ ) थरथर धरा खुब्भंति सायरा होह विम्हलो दइवो । असमववसायसाहससंलद्वजसाण धीराणं ॥ अथक परिश्रम और साहस से यश पानेवाले धैर्यवानों से पृथ्वी थर्राती है, समुद्र क्षुब्ध हो जाता है और भाग्य विस्मित हो जाता है । - वज्जालग्ग ( १० / ३ ) तं किं पि कम्मरयणं धीरा ववसंति साहसवसेणं । जं बंभहरिहराण वि लग्गइ चित्ते चमक्कारो || धैर्यवान अपने साहस से कर्मरत्न का कुछ ऐसा व्यवसाय करते हैं जो शिव और विष्णु को भी आश्चर्य लगता है । धीरेण समं समसीसियाई रे दिव्व आरुहंतस्स | होहि किं पि कलंक ध्रुव्वंतं जं न फिट्टिहि ॥ - वज्जा लग्ग ( १० / ५ ) अरे भाग्य ! धीर के साथ स्पर्धा करने पर तुझे कुछ ऐसा कलंक लगेगा जो बार-बार धोने पर भी नहीं मिटेगा । - वजालग्ग (१०/६ ) जह जह न समप्पइ विहिवसेण विहडंतकज्जपरिणामो । तह तह धीराण मणे वड्ढइ बिउणो समुच्छाहो ॥ Jain Education International 2010_03 जैसे-जैसे भाग्यवश बिगड़ते हुए कार्य का परिणाम ( सफलता ) प्राप्त नहीं होता, वैसे-वैसे धीरों के मन में दूना उत्साह बढ़ने लगता है । - वजा लग्ग (१०/७) विसयजलं मोहकलं, विलास बिब्बो अजलयराइन्नं । मयमयरं उत्तिन्ना, तारुण्ण महन्नवं धीरा ॥ जिसमें विषयरूपी जल है, मोह की गर्जना है, स्त्रियों की विलास भरी [ १५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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