SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहवा मरंति गुरुवसणपेल्लिया खंडिऊण नियजीहं । नो गंतूण खलाणं चवंति दीणक्खरं धीरा ॥ धैर्यवान् भारी कष्ट से पीड़ित होने पर अपनी जिह्वा काट कर मर भले ही जाय किन्तु खलों (दुष्ट पुरुषों ) के आगे जाकर दीन वाणी नहीं बोलता है । ता तुंगो मेरुगिरी मयरहरो ताव ता विसमा कजगई जाव न धीरा धैर्यवान जब तक धीरजन कोई कार्य करना स्वीकार नहीं कर लेते, तभी तक मेरुपर्वत ऊँचा है, समुद्र दुस्तर है और तभी तक कार्य सिद्धि में विघ्न रहते हैं । -वजालग्ग ( ६ / १३ ) संघडियघडियविघडियघडंत -वजालग्ग (६/७) होइ दुत्तारो । पवज्जंति " ता विस्थिण्णं गयणं ताव विवय जलहरा अइगहीरा । ता गरुया कुलसेला जाव न धीरेहि तुल्लंति ॥ आकाश तभी तक विस्तीर्ण है, सागर तभी तक अगाध है और कुलशैल तभी तक बड़े हैं, जब तक उनकी तुलना धैर्यवानों से नहीं की जाती । Jain Education International 2010_03 चालिज्जइ बीभेइ य, धीरो न सुहमेसु न संमुच्छइ, भावेसु न धीर पुरुष न तो परीषह, न उपसर्ग आदि से विचलित और भयभीत होता है और न ही सूक्ष्म भावों एवं देवनिर्मित मायाजाल में मुग्ध होता है । - ध्यान - शतक ( ६१ ) - वज्जालग्ग (६/१४) For Private & Personal Use Only परीस होवसग्गेहि । देवमायासु || विघडंतसंघडिज्जंतं । अवहत्थिऊण दिव्वं करेइ धीरो समारद्ध | जो पहले साथ था या बना था या बिगड़ गया थ और अबा जो बन रहा १५२ ] www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy