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________________ स्वसमय-परसमय का ज्ञाता, गम्भीर, दीप्तिमान, कल्याणकारी एवं सौम्य और शताधिक गुणों से युक्त ही निर्ग्रन्थ-प्रवचन के सार के कथन का अधिकारी है । -बृहत्कल्पभाष्य ( २४४) ज्ञान णाणी ण विणा णाणं। ज्ञान के बिना कोई ज्ञानी नहीं हो सकता । -निशीथ-भाष्य (७५) ___णाणं भावो ततो ऽण्णो । ज्ञान आत्मा का ही एक भाव है । -निशीथ भाष्य (६२६१) णाणं अंकुसभूदं मत्तस्स हू चित्त हत्थिस्स। मन रूपी उन्मत्त हाथी को वश में करने के लिए ज्ञान अंकुश के सदृश है । -भगवती-आराधना (७६०) णाणं णरस्स सारो। ज्ञान मनुष्य का सार है। -दर्शन-पाहुड़ (३१) इह भविए वि नाणे, परभविए वि नाणे, तदूभय वि नाणे। ज्ञान का आलोक इस जन्म, परजन्म और कभी-कभी दोनों जन्मों में भी रहता है। -भगवती सूत्र ( १/१) सव्वजगुज्जोयकरं नाणं । ज्ञान संसार के समस्त रहस्यों को प्रकाशित करनेवाला है । -व्यवहार-भाष्य (७/२१६) [ ११५ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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