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________________ आभयजान्य-आभिषेचनिक शब्दरत्नमहोदधिः। २९९ आभयजान्य पु. (अभयजानस्य अपत्यं गर्गा० यञ्) | आभिचरणिक त्रि. (अभिचरणं प्रयोजनं यस्य) शत्रुना ઉપરનો અર્થ જુઓ. મારણ, ઉચ્ચાટન અથવા વશીકરણનાં સાધન મંત્ર आभरण न. (आ+भृ+कर्मणि ल्युट) सा२, ५३०. | वगेरे अथवा सेवा प्रयोग. - वाहनानि च सर्वाणि शास्त्राण्याभरणानि च-मनु० आभिचारिक त्रि. (अभिचार ठक्) १. हुसंधा, ७।२२२ २. अमि॥५पूर, (न.) ममिया२, द्रा, हुआभरित त्रि. (आभर आभरणं जातोऽस्य इतच्) पूरेस, टोन.. भरेस, श॥३८, मरात. आभिजन त्रि. (अभिजनस्येदं अण्) ५२५२थी. आभर्मन् न. (आ+भृ+मनिन्) सरी शत. भ.२९.पोष, तरी. भावेसवंश संधी.. ગર્ભ વગેરેનું પોષણ. आभिजन त्रि. (अभिजनादागतः) वंशयी मावेस. -तां __पार्वतीत्याभिजनेन नाम्ना बन्धुप्रियां बन्धुजनो जुहावआभा स्त्री. (आ+भा+अङ्) १. iति, २. शोभा- | कुमार० १२६ प्रशान्तमिव शुद्धभम्-मनु० १२।२७ , 3. दीप्ति, | आभिजात्य न. (अभिजातस्य भावः ष्यञ्) १. दुदीनपj, ४. 6५मान, ५. पावस. नामनी. वनस्पति - आभा __४न्मथी. श्रेष्ठता, २. पाउतपाj, 3. सुन्६२५६.. बबुलपर्यायः कथितः कोविदैरिह-भावप्रकाशः, सादृश्य आभिजित त्रि. (अभिजिति नक्षत्रे जातः अण्) समिति -यमदूताभम्-पञ्च० ११५८ નક્ષત્રમાં પેદા થનાર. आभाणक पु. (आ भण् ण्वुल्) 34.d, l24.51२. आभिजित्य त्रि. (अभिजिति नक्षत्रे स्वार्थे यञ्) 6५२नो आभाति स्त्री. (आभाति तुल्यरूपतया आ+भा+क्तिच्) अर्थ हुआ. प्रतिलि. आभिधा स्त्री. (अभिधैव स्वार्थे अण्) १. नाम, आभाष पु. (आ भाष घञ्) संबोधन, प्रस्तावना, २. ४३, मोर, मे. नी. १०वृत्ति. भूमि... आभिधातक न. (अभिधां तकति-सहते अच्) २६. आभाषण न. (आ+भाष+ल्युट) १. ५२२५२. वातयात, आभिधानिक त्रि. (अभिधान ठक्) 8 0 २०६ - सम्बन्धमाभाषणपूर्वमाहुः-रघु०२।५८, २. सावा, ओशम डोय, (पु०) ओशsal. 3. संबोधन. आभिधानीयक न. (अभिधानीयस्य भावः वुञ्) 34 आभाष्य त्रि. (आ+भाष्+ण्यत्) यातयात. ४२१योग्य, યોગ્યપણું. संमोधन मा५वा योग्य, (ल्यप्) डीने. आभिप्लविक त्रि. (अभिप्लवे विहितः ठक्) ते. नमन। आभास पु. (आभासते आ+भास्+अच्) १. . , सू-साम. ३. sila, 51512, २. प्रतिलिप - तत्राज्ञानं धिया आभिमानिक त्रि. (अभिमानेन निर्वृत्तः ठक्) भत्मिभानथा. नश्येदाभासात् तु घटः स्फुरत्-वेदान्तः , 3. डg ઉત્પન્ન થયેલ. મળવું વગેરે, ૪. ઉપાધિની તુલ્યતા હોવાથી ભાસમાન आभिमुख्य न. (अभिमुखस्य भावःष्यञ्) १. सन्मुषपण, પ્રતિબિંબ, ૫. ન્યાયશાસ્ત્ર પ્રસિદ્ધ દુષ્ટ હેતુ હેત્વાભાસ समिभुम५, २. सामसभा भवj. - नीताभिमुख्यं पुनः -रत्न० ११२ , 3. अनुदूगता. वगेरे, . तुल्य २, - नमश्च रुधिराभासम् आभिरूपक न. (अभिरूपस्य भावः वुञ्) सौन्हा, रामा०, ७. धना मभिप्रायना पनि३५. अमु साय. એક વ્યાખ્યાનનો અંશ. आभिरूप्य न. (अभिरूपस्य भावः व्यञ्) 6५२नो आभासुर त्रि. (आ+भास्+घुरच्) सारी दीप्ति.वाणु, म. एम. 6°qu. आभिषिक्त त्रि. (आभिषिक्तमभिषेकः तेन निवृत्तः आभास्वर पु. (आ+भास्+वरच्) ते. नमन। योस.6 __अब्) अभिषे.४थी. उत्पन थयेट.. ગણદેવોનું સમુદાયવાચક નામ. आभिषेचनिक त्रि. (अभिषेचनं राज्याभिषेकः प्रयोजनमस्य आभास्वर त्रि. (आभासते इत्येवं शील:) हीप्तिमान ठज्) २५याभिषे.नु साधन द्रव्य वगेरे. - સ્વભાવવાળું, શાનદાર. आभिषेचनिकं यत् ते रामार्थमुपकल्पितम् -रामा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
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