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________________ २५० शब्दरत्नमहोदधिः। [-अस्ताग असृज् न. (न सृज्यते इतरागवत् संसृज्यते सहजत्वात् | अस्त पु. (अस्+क्त) अस्तायल, पर्वत, पश्चिमाद्रि. न+सृज्+क्विप्) १. सही, २. भगवड, 3. ते. विडम्बयत्यस्तनिमग्नसूर्यम् -रघु. १६।११ नामनो मे योग, ४. दुम-उस२. अस्त त्रि. (अस् कर्मणि क्त) ३४८, समाप्त थयेस, असृष्ट त्रि. (न सृष्टः) नउि स२४८, नल पे६८ ४२८, सस्त. पास, साथभेत. -करजालमस्तं समयेऽपि नहि बनेल. सताम्-शि० असेचनक त्रि. (न सिच्यते तृप्यति मनोऽत्र सिच् | अस्त न. (अस् भावे क्त) सूर्यन, साथम, अंत, ल्युट+कन्) १. हेना नथी. मानने तृप्ति नथी. थती. છેડો, નહિ દેખાવું, મૃત્યુ, જ્યોતિષશાસ્ત્ર પ્રસિદ્ધ ते, अत्यंत प्रियशन, मनोड२, २. ७i24 . सनथी. सात , स्थान. - राज्यमस्तमितेश्वरम्-रघु. नयनयुगासेचनकं मानसकृत्याऽपि दुष्प्रापम् -सा० द० अस्तक प (अस्तं करोति अस्त णिच+ण्वल) alon असेवन न. (न सेवनम्) सेवानी समाद भाक्ष. असेवन त्रि. (न सेवनम् यस्य) सेवा वगर्नु.. अस्तग त्रि. (अस्तमदर्शनं गच्छति गम्+ड) मस्त. असेवा स्त्री. (न सेवा) सेवामा समाव, अभ्यास. થયેલ, આથમેલ, અદશ્ય થયેલ, આથમનાર. वगरनु. न तथैतानि शक्यन्ते सन्नियन्तुमसेवया-मनु० अस्तगत त्रि. (अस्त+गम्+क्त) मायभेद. 6५२नो. २९६ म. मी. असेवित त्रि. (न सेवितम्) . सेवस. अस्तगमन न. (अस्तस्य अदर्शनस्य गमनम्) अस्त. असेव्य त्रि. (न सेव्यः) सेवा anus नाहित. य, साथम, सदृश्य थ. असौ अव्य. भ पहुं. अस्तगिरि पु. (अस्ताय गिरिः) अस्तायलपर्वत. असौन्दर्य न. (न सौन्दर्य्यम्) सुं६२५j नलित, सौन्यानो अस्तनिमग्न त्रि. (अस्ते पर्वते निमग्नः) अस्तायसनी. समाव. छुपाये - विडम्बयत्यस्तनिमग्नसूर्यम् - असौम्य त्रि. (न सौम्यः) सौम्य नलित, मयं.७२, घो२. रघु. १६११ असौभ्यस्वर त्रि. (असौम्यः स्वरो यस्य) ठेवा अस्तब्ध त्रि. (न स्तब्धः) स्त. न त, गर्विष्ट ખરાબ સ્વરવાળું, કઠોર સ્વરવાળું. न डोय, हीमो. न. डोय. असौष्ठव त्रि. (न सौष्ठवः) सुं४२५९नी अमाव अस्तब्धता स्त्री. (अस्तब्धस्य भावः तल्) सस्ता . કાંતિનો અભાવ, લાવણ્ય રહિત अस्तब्धत्व (अस्तब्धस्य भावः त्व) 3५२नो अर्थ हुआ. असौष्ठव न. (न सौष्ठवं यस्य) १. साई नलित, अस्तम् अव्य. (अस्+क्त) ना, अशन, साथमा. ५२, मसुं६२, २. ३५ता, वि.reintu, ना , अस्तमती स्त्री. (अस्तमतति अत्+अच् डीप्) ते. नामान, गु२हित, -गमनमलसं शून्या दृष्टिः शरीरम એક ઝાડ, સાલવણ. सौष्ठवम्- माल० अस्कन्न त्रि. (न स्कन्नः) नल २८, न3 2५.३८.. अस्तमन न. (अस्तम् अस्तस्य अनः गतिः) मायम, . महशन. अस्कम्भन त्रि. (न स्कम्भनम् यस्य स्कम्भ+ल्युट) अस्तमय पु. (अस्तो मीयते यत्र अस्त+मिन्+अच्) १. टायत वार्नु, २. प्रतिबंध.२डित. अस्कम्भन न. (न स्कम्भनम्) १. २२.९ नलित, प्रलय. न२, ५तन, हानि, पात, -उदयमस्तमयं च २. प्रतिधनो. समाव. रघूद्रहात्- रघु. ९९ सूर्य वगेरेनु महशन. अस्कृधोयु त्रि. (न स्कम्भनम्) १. मविश्छन, -करोत्यकालास्तमयं विवस्वतः कि. ५।३५ २. स्व. नलित, 3. eij, विस्तारवाj. अस्तमित त्रि. (अस्तम्+इ+क्त) माथभेस, ६२५. अस्खलित त्रि. (न स्खलितः) स्मखना न पामेल, थयस. પોતાના કર્તવ્યથી અપ્રમાદી, અટલ, પોતાના કામમાં | अस्तरण न. (न स्तरणम्) नडि पाथर. સાવધાન, નહિ ભ્રષ્ટ થયેલ, અવિચલિત-દઢ. अस्ताग पु. गत उत्सपिएन। १५मा हैन तीर्थ.5२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016067
Book TitleShabdaratnamahodadhi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktivijay, Ambalal P Shah
PublisherVijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages864
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size23 MB
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