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________________ कथाकोष प्रकरण और जिनेश्वर सूरि । ___ "अन्यदा राजगृहमें दूर देशसे रत्नकंबल बेचने वाले बनिये आये । उन्होंने वहांके महाजनोंको कंबल बताये । महाजनोंने पूछा इनका दाम क्या है ? तो उन्होंने कहा 'एक-एककी कीमत एक-एक लाख है।' 'बहुत महंघे हैं। ऐसा कह कर किसीने नहीं लिया । वे राजमहल में गये । श्रेणिक राजाको दिखाये लेकिन बहुत महंधे होनेसे उसने भी न लिये । रानी चेल्लनाने राजासे कहा कि 'मेरे लिये तो एक लो।' परंतु राजाने न चाहा । बनिये वहांसे चले गये । घूमते फिरते वे भद्राके घर पर पहुंचे तो उसने देख कर वे सब ले लिये और मूल्य चुका दिया। रानी चेल्लना राजाके कंबल न ले देने पर रुष्ट हो गई । राजाने उन बनियोंको फिर बुलाया तो उन्होंने कहा गोभद्र सेठकी पत्नी भद्राने हमारे सब कंबल खरीद लिये हैं। राजाने फिर अपने एक प्रधान पुरुषको उसके वहां भेजा और कहलाया कि कीमत ले कर एक कंबल मेरी रानी चेल्लनाके लिये देना । भद्राने कहा- 'महाराजके साथ हमारा क्या व्यापार-व्यवहार ? बिना ही मूल्यसे कंबल दिया जा सकता है। परंतु वे सब कंबल तो मैंने अपनी पुत्रवधुओंको, पलंगके नीचे, पांव पौंछनेके लिये, डाल रखने को दे दिये हैं। बहुत समयके बने होनेसे उनमें कीडोंने कुछ धागे निकाल दिये हैं और इस लिये उनसे बहुओंके कहीं पांव न छिल जायँ इस डरसे उनके 'पायपोंछ' भी नहीं बनाये गये । महाराजका यदि उनसे कुछ काम निकल सकता हो तो, आज्ञा होने पर समर्पण कर दिये जायंगे ।' राजासे यह निवेदन किया गया । वह सुन कर प्रसन्न हुआ - अहो ! मैं कृतार्थ हूं जिसके प्रजाजनोंमें ऐसे वणिग् लोक हैं । मुझे देखना चाहिये कि कैसा उनका समृद्धिविस्तार है । प्रधान पुरुषोंको भेज कर राजाने शालिभद्रको मिलने बुलाया तो सेठानीने कहलाया कि 'महाराज, ऐसी आज्ञा न करें । शालिभद्रको आज तक चंद्र-सूर्यके भी कमी दर्शन नहीं हुए । महाराज, कृपाकरके मेरे घर पर पधारें ।' राजाने स्वीकार किया । भद्राने कहलाया मैं जब महाराजको बुलाऊं तब आवें । उसके बाद उस सेठानीने [ राजाके आगमनके स्वागत निमित्त तैयारियां की ] राजमहलके सिंहद्वारसे लेकर अपने घर तकके राजमार्गको सजानेकी व्यवस्था की । पहले बडी लंबी लंबी बल्लियां खडी की। उन पर आडे वांस डाले । उन पर वांसकी खपाटें रखीं और उनको सणकी दोरियोंसे (सूतलीसे ) खूब कसकर बांधीं। उन पर खसकी टट्टियां बिछाई गईं । उनके नीचे द्रविडादि देश (मदुरा ?) के बने हुए मूल्यवान् वस्त्रोंके चंदुए बांधे गये । हारावलियोंको लटका कर कंचुलियां बनाई गई । जालियां बनाकर उनमें वैडूर्य लटकाए गये । सोनेके बने झुमके बांधे गये । पांचों वर्गों के मिले हुए तरह तरहके फूलोंसे आच्छादित पुष्पगृह बनाया गया । बीच-बीचमें जगह-जगह तोरण लटकाए गये । सुगन्धित जलका जमीन पर छटकाव किया गया । पद-पद पर कालागुरु आदि धूपसे महकती धूपदानियां रखी गई । सर्वत्र पहरा देनेके लिये शस्त्रधारी पुरुष नियुक्त किये गये। जगह-जगह मंगलोपचार करनेवाली विलासिनी स्त्रियों द्वारा, गीत वादित्र आदिके साथ, नाटकादिका प्रबन्ध किया गया । इस प्रकार की सब सजावट करके, फिर अपने प्रधान पुरुष भेज कर सेठानीने महाराजाको, उचित परिजनोंके साथ, आनेका आमंत्रण मेजा। राजा श्रेणिक, रानी चेल्लणाके साथ पालकीमें बैठ कर सुभद्रा सेठानीके घर पर जाने निकला । रास्तेमें राजमहलोंके सिंहद्वारसे ले कर सेठानीके घरके द्वार तक जो कुछ सजावट की गई थी उसे रानी चेल्लनाको बताता हुआ, राजा सेठानीके घर पहुंचा। वहां उसका मंगलोपचार द्वारा खागत किया गया । कोठीके अंदर प्रवेश करते हुए उसने पहले तो दोनों तरफ बनी हुई, अच्छे-अच्छे प्रकारके घोडोंकी घुडशाल देखी। उसके बाद शंख और चामरोंसे अलंकृत ऐसे हाथी और हाथीके बच्चोंके समूहको देखा । भवनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016066
Book TitleKathakosha Prakarana
Original Sutra AuthorJineshwarsuri
Author
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages364
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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