SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयकाण्डम् लोकवर्गः १ भूमि वसुमती क्षोणी रत्नगर्भा वसुन्धरा ॥३॥ जगती वसुधा गोत्राऽचलाऽनन्ता रसा च भूः । विश्वम्भरा च पृथिवी स्थिरा कुः सागरांबरा ॥४॥ महीधात्री च पृथ्वी च धरित्री धरणी क्षमा । धरा क्षोणिः क्षितिक्ष्मा गौरिला सर्वसहाऽवनिः ॥५॥ 'मृत्तिकामृत् प्रशस्ता चेत् मृत्सा मृत्स्ना च सामता । ऊपः स्यात्क्षारमृत् सर्व सस्याख्या योर्वरी च सा ॥६॥ स्थलं स्थलाऽकृत्तिमा तु स्थली चोषरमूषवत् । जो पांच पांच क्षेत्र है वे जम्बूद्वीप में एक एक और धातकीखण्ड द्वीप तथा पुष्कवरद्वोपार्ध में दो दो क्षेत्र होते है। [३] तीर्थङ्कर २४, चक्रवर्ती १२, वासुदेव ९, बलदेव ९, प्रतिवासुदेव ९, इन तिरसठ [६३] शलाका पुरुषों की जन्मभूमि के तीन नामआर्यावर्त १ पुं०, पुण्यभू २, आचारवेदी ३ स्त्री०, यह दक्षिण भरतार्थ का मध्यस्खण्ड वैताढ्य से दक्षिण लवणोदधि से उत्तर , गङ्गा से पश्चिम, सिंधु से पूर्व में है । हिन्दी-(१) भूमि के एकतीस नाम-भूमि १, वसुमति२, क्षोणो ३, रत्नगर्भा ४, वसुन्धरा ५, जगती ६, वसुधा ७, गोत्रा८, अचला ९, अनन्ता १०, रसा ११, भू १२, विश्वम्भरा १३, पृथिवी १४, स्थिरा १५, कु १६, सागराम्बरा १७, मही १८, धात्रो १९, पृथियो २०, घरित्री २१, धरणी २२, क्षमा २३, धरा २४, क्षोणि २५, क्षिति २६, क्षमा २७, गो २८, इला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy