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________________ मन्द्राऽपि च हैरिनानेकर्ण विष्वपि तृतीयकाण्डम् ३२७ नानार्थवर्गः ३ कालेऽप्यजातशृङ्गोगौ रश्मश्रुर्नाऽपि तूबरः ॥१८१॥ यमेन्द्राऽर्काऽनिलाश्चन्द्र वाजि सिंहांशु विष्णावः । कप्यहीशुकभेकौ च हैरिर्ना कपिले त्रिषु ॥१८२॥ मात्रा परिच्छदे वित्त मानेकर्ण विभूषणे । तीथाषधि जलव्योम पद्मखड्ग फलेष्वपि ॥१८३॥ वाध भाण्डमुखे हस्ति हस्ताऽग्रे पुष्कर मतम् । अंग्र पुरस्तादुपरि परिमाणेऽप्यथो दरः ॥१८४॥ श्वभ्रे भयेऽक्षर मोक्षेऽपवर्गेऽप्यथ चाऽम्बरम् । व्योम्नि वाससि,गोत्रंतु नाम्नि,तन्त्रं परिच्छ दे॥१८५।। सूत्रवायेऽपि सिद्धान्ते प्रधाने चाऽथ गहरः । (१) 'तूबर' प्रौढ उमर में शींगहीन, पशुओं में, श्मश्रुहीन उमरवाले पुरुषों में कषायरस में पु० । (२) 'हरि यम इन्द्र अर्क अनिल चन्द्र वाजा सिंह अंशु विष्णु कपि अहि शुरु भेक में पु०, कपिल में त्रि० । (३) 'मात्रा' परिच्छद वित्तमान कर्ण. विभूषण अक्षरावयव स्वल्प में स्त्री०, कर्म्य अवधारण में नपुं० । (४) 'पुष्कर' तीर्थ औषधि जल व्योम कमल स्वङ्गफल वाद्यभाण्ड. मुख हस्तिहस्ताग्र (द्वीप विहग राग उरगान्तर) में नपुं० । (५) 'अग्र पुरस्तात् उपरि फलपरिमाण आलम्बन समूह प्रान्त में नपुं०, अधिक प्रधान प्रथम में त्रि० । (६) 'दर' श्वभ्र (गर्त) भय (साब्वस्) में नपुं०, 'दरी कन्दर में स्त्री०, 'दर मनाक् अर्थ में अव्यय । (७) 'अक्षर' मोक्ष अपवर्ग ओं में नपुं० । (८) 'अम्बर व्योम वस्त्र कार्पास सुगन्धक में नपुं० । (९) 'गोत्र' नाम कुल (संभावनीयबोध कानन क्षेत्र कर्म) में नपुं शैल में पु०, 'गोत्रा' भूमि गो में स्त्री० । (१०) 'तन्त्र' परिच्छद तन्तुवाय सिद्धान्त प्रधान कुटुम्बकृत्य औषधोत्तम शास्त्रभेद श्रुति शाखान्तर उभयार्थक हेतु में नपुं० । नपुं०, अधम में नपुर मोक्ष में नपुं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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