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________________ तृतीयकाण्डम् २७३ विशेषणवर्गः २ क्षारिताऽऽक्षारितौ वाच्योऽभिशस्तोऽथ मनोहतः । हतः प्रतिहतश्चैव प्रतिबद्धोऽमनोरथे ॥४८॥ देष्यस्तिरस्करिण्यादिः कशा कश्यं इष्यते । पिशुनो दुर्जनो वाऽपि खलो भेदक्रियापटुः ॥४९॥ गुप्तसंबचनात्कणे जपः सूचक इत्युभौ । हननीयः स्मृतो बध्ये धुत व्यंसकवञ्चकौ ॥५०॥ 'क्रूरे पापे नृशंसश्च चिकुरश्चञ्चलेऽपि च । "दरिद्रे दुर्गतो दीनो रङ्को नि:स्वश्च दुर्विधः ॥५१॥ प्रोच्यते कृपणे क्षुद्रः कदर्यस्तु मितंपच । (१) पुरुष दोष से मिथ्याकलंकित किये गये के चार नामक्षारित १ आक्षारित २ वाच्य ३ अभिशस्त ४ । (२) भङ्ग मनोरथ के चार नाम-मनोहत १ हत २ प्रतिहत ३ प्रतिवद्ध ४ । (३) तिरस्करिणी (पड़दा) आदि को 'दूष्य' कहते हैं (नानार्थ) (४) चाबूक (कोडा) मारने योग्य के दो नाम-कशाह १ कश्य २ । (५) एक दूसरे में भेद (फूट) करवाने वाले के तीन नाम-पिशुन १ दुर्जन २ खल ३ । (६) विपक्षी को गुप्त सूचना देनेवाले (चुगलखोर) के दो नाम-कर्णेजप १सूचक २। (७), फांसी देने योग्य के दो नाम-हननीय १ वध्य २। (८) धूर्त के तीन नाम-धूर्त १ व्यंसक २ वञ्चकः ३ । (९) कर के तीन नाम-कूट १ पाप२ नृशंस ३ । (१०) चञ्चल अर्थ में भी एक नाम-चिकुर १ (११) दारिद्र के छ नाम-दरिद्र १ दुर्गत २. दीन ३ रङ्क ४ निःस्व ५ दुर्विध (१२) । कृपण अर्थ में एक नाम-क्षुद्र १ । (१३) कदर्य के दो नाम-कदर्य १ मितंपचर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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