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________________ - तृतीयकाण्डम् २७२ विशेषणवर्गः १ 'एडमूकस्ववाकर्ण स्तूष्णीको मौनमास्थितः । प्रत्याख्यातो निरस्तोऽपि प्रत्यादिष्टो निराकृतः ॥४४॥ शठेऽनृजु विप्रलब्धे वश्चितो नाटकादिषु । भेर्यादि वादके नान्दीवादी नान्दीकरो मतः ॥४५॥ नग्नो दिगम्बरोऽवासा अपध्वस्ते तु धिकृतः। व्यसनि न्युपरक्तः स्यात्समौ संकसुकाऽस्थिरौ ॥४६॥ निष्कासितेऽवकृष्टः स्याद् विवे शारिष्टदुर्मतिः। व्यासक्तो व्याकुलो व्यग्रस्तुल्यो विलविक्लवौ ॥४७॥ (१) जो न बोले न सुने का एक नाम-एडमूक १ । (२) मौन हो जाने का एक नाम-तुष्णीक १। (३) जिसका प्रस्ताव लौटा दिया हो उसके चार नाम-प्रत्याख्यात १ निरस्त २ प्रत्यादिष्ठ ३ निराकृत ४ । (४) शठ अर्थ में एक नाम-अनृजु १ । (५) ठगे गये के दो नाम-विप्रलब्ध १ वञ्चित २ (६) नाटकादि मङ्गल वादक पाठक के दो नाम-नान्दीवादो १ नान्दीकर २। (७) जिसने वस्त्रधारण छोड़ दिया है उसके तीन नाम - नग्न, १ दिगम्बर २ अवासाः३ । (८) धिक्कारे गए के दो नाम-अपध्वस्त १ धिक्कृत २ (न्यक्कृत) । (९) व्यसनी के दो नामव्यसनी १ उपरक्त २ । (१०) अस्थिर के दो नाम-संकसुक १ मस्थिर २ । (११) बाहर निकाले गये के दो नाम-निष्कासित १ अवकृष्ट २ । (१२) विगड़ी बुद्धि वाले के दो नाम-विवश १ मरिष्टदुर्मति २ । (१३) व्याकुल के तीन नाम-व्यासक्त १ व्याकुल २ व्यग्र ३ । (१४) उमंग छोडे हुए के दो नाम-विह्वल: १ विक्लव २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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