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________________ द्वितीयकाण्डम् २२८ वणिग्वर्गः १० हल्यं' सीत्यं च कृष्टंस्या क्षेत्रं कृष्टं यदेकधा । शम्बाकृतं द्विहल्यं च द्विसीत्यं द्विगुणाकृतम् ।।९।। त्रिहल्ये तु त्रिसीत्यं स्यात् त्रिगुणाकृतमित्यपि । उप्त्वा कृष्टं भवेदुप्त कृष्टं बीजाकृतं तथा ॥१०॥ वापे द्रोणाऽऽढकादेः स्यु द्रोणिकाऽऽढेकिकादयः । खारोवापोऽपि खारीक स्त्रिविमा अमृतादयः ॥११॥ स्युः कैदारिक कैदायें क्षेत्र कैदारकं गणे। (१) जो खेत एक बार खेया गया उसके तीन नाम-हल्य १ सीत्य २ कृष्ट ३ नपुं० । (२) दो वार खेये गये क्षेत्र के चार नाम-शम्बाकृत १ द्विहल्य २ द्विसीत्य ३ द्विगुणाकृत ४ नपुं० । (३) तिवारे खेडे गए खेत के तीन नाम-त्रिहल्य १ त्रिसीत्य २. त्रिगुणाकृत ३ नपुं० । (४) बीजवपन के साथ खेडे क्षेत्र के दो नाम-उप्तकृष्ट १ बीजाकृत २ नपुं. (५) द्रोण परिमित (दश सेटक) मात्रबोज वपन योग्य के दो नाम-द्रोणिक १ द्रोणवाप २ अथवा दस सेर अन्नपाक योग्य तपेली आदि वर्तन का भी नाम 'द्रौणिक' है त्रिलिङ्ग । (६) आढक (अढाई सेर) मात्र बीज बोए जाय ऐसे क्षेत्र के दो नाम-आढकिक १ आढकवाफ २ आढकिक नाम पाचन स्थापन आदि वर्तन का भी होता है त्रिलिङ्ग । (७) खारी (एक मन) वपन योग्य क्षेत्र के दो नामखारीवाप १ खारीक २, खारी मापक वर्तन पाचन स्थाली आदि अर्थ में खारीक का ही प्रयोग होता है (अमृतादि त्रिलिङ्ग । (८) क्षेत्र समूह के चार नाम-कैदारिक १ कैदार्य २ क्षैत्र ३ कैदारक ४ नपुं०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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