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________________ २२७ द्वितीयकाण्डम् वणिवर्गः १० अथ वाधुषिको' वृद्धया जीवस्तद्वत्कुसीदिकः ॥४॥ कर्षकः कृषकः क्षेत्रा जीवः क्षेत्री कृषीवलः । स्यात्क्षेत्र वप्रकेदारावस्त्री सेतुस्तु संवरः ॥५॥ आलिः पाल्यपि शाकस्य क्षत्रं स्यात् शाकशाकटम् । शाकशाकीन मोमीन मुम्यं यव्यं यवक्यवत् ॥६॥ तैलीनमपि तिल्यं च माषीणं माष्यमुच्यते । बेहेयं चापि शालेयं व्रीहि शाली बिवृद्धिमत् ॥७॥ मौद्गीनं भाङ्गय भाङ्गीने अणैवीन मणोस्तथा । अणव्यमथ षाष्ठिक्यं" कौद्रवीणमनुक्रमात ॥८॥ (१)व्याज पर जीने वाले के तीन नाम-वार्धषिक (वाघुकि-वाधुकिन्) १ वृद्धजीव २ कुसीदिक ३ पु० । (२) कृषक (किसान) के पांच नाम-कर्षक १ कृषक २ क्षेत्राजीव ३ क्षेत्री ४ कृषीवल ५ पु० । (३) क्षेत्र (खेतर) के तीन नाम-क्षेत्र १ वा २ केदार ३ पु० नपुं० । (४) खेत के किनारे इर्द गिर्द में घेडावा के चार नाम-सेतु १ संवर २ पु०, आलि (आली) ३ पालि (पाली) ४ स्त्री० । (५) भाजी खेत के दो नाम-शाकशाकट १ शाकशाकीन २ नपुं० । (६) अलसी क्षेत्र के दो नाम--ओमीन१ उम्य२ नपुं० । (७) यव (जौ) क्षेत्र के दो नाम-यव्य १ यवक्य २ नपुं० । (८) तिल क्षेत्र के दो नाम--तैलीन१ तिल्य२ नपुं० । (९) उड़द क्षेत्र के दो नाम-माषीण १ माष्य २ नपुं० । (१०) बोहि क्षेत्र का एक नाम-वैहेय १ नपुं० । (११) शालि क्षेत्र का एक नाम-शालेय १ नपुं० । (१२) मुंग क्षेत्र का एक नाममौद्गोन १ नपुं०। (१३) शैण क्षेत्र के दो नाम-भाग्य १ भांगीन २ नपुं० । (१४) कौनो क्षेत्र के दो नाम-अणवीन १ अणव्य २ नपुं० । (१५) साठी क्षेत्र का नाम-पाष्ठिक्य १ नपुं० । (१६) कोदो क्षेत्र का एक नाम-कौद्रवीण १ नपु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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