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________________ द्वितीयकाण्डम् २०१ क्षत्रियवर्गः९ आयेतिः स्युत्तरेकाले चमेरं चामरं समे ॥३४॥ सुदायो यौतुके देये सज्जन सैन्यरक्षणे । उपग्राह्योपचारौ द्वा वुत्कोच उपहारकः ॥३५।। उपदानं कौशलिकं दौकनाऽऽमिष प्राभृतम् । उपायनं तथा लञ्चो पदा दाने स्वयं कृते ॥३६॥ पुस्यु देकः फलं भावि सद्यः सान्दृष्टिकं तु यत् । हैमं सिंहासन तुल्ये भद्रासन नृपासने ॥३७॥ भृङ्गारः पुसि. झारी स्त्री झरोका कनकालुका । (१) उत्तर (आगल) काल का एक नाम-आयति १ स्त्री. । (२) चामर के दो नाम-चमर १ चामर २ नपु. । (३) कन्या विवाह में व्रतभिक्षा दि में देय द्रव्य के दो नामसुदाय १. यौतुक २ नपु. (४) सेना के पहरेदार का एक नाम-सज्जन [उपरक्षण] नपु. । (५) रिशवत के बारह नाम-उपग्राह्य १ उपचार २ स्कोच ३ उपहार ४ पु., उपदान [उपप्रदान] ५ कौशालक ६ ढोक। ७ आमिष ८ ग्रामृत ९ उपायन १० नपु, लञ्चा ११ उपदा १२ (६) भावी 'फल का एक नाम उदर्क १ पु. ! (७) सद्यःफल (व्यापार आदि) का एक नाम-सान्दृष्टि रू १ नपुं.। (८) सुवर्णसिंहासन का एक नाम -सिंहासन १ नपुं.। (९) मणि घटित नृपासन के दो नाम-भद्रासन १ नृपासन २ नपु. । (१०) सुवर्ण जलपात्र के चार नाम-भृङ्गार १ पु. झारी २ झरिका ३ कनकालुका ४ स्त्री. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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