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________________ द्वितीयकाण्डम् १५० पशुवर्गः ६ समवाय स्तथा वारः संहति स्त्री नपुंसकम् ॥४०॥ निकुरम्बं कदम्ब र वृन्दं वर्गः समः स्मृतः । सजातीयैः कुलं संय सार्थो स्यातां तु जन्तुभिः॥४१॥ समैनः पशुवृन्देना तिरश्चां यूथे मस्त्रियाम् । अन्येषां तु समाजोऽथ निकायः सह धर्मिणाम् ॥४२॥ धान्यादेरुत्करः पुजराशीना कूटमखियाम् । शौकतैत्तिर मायूर कापोतादि स्वके गणे ॥४३॥ छेको वा गृह्यकागेहाऽऽसक्ता ये पक्षिणो मृगाः। ॥ इति पशुवर्गः समाप्तः॥ संहति १९ स्त्रि०, निकुरम्ब २० कदम्ब २१ वृन्द २२ नपुं० । (१)प्राणि वा अप्राणि के समूह को 'वर्ग' कहते हैं। (२) सजातीय समुदाय को 'कुल' कहते हैं नपुं.। (३) समुदाय को संघ' तथा 'सार्थ' कहते हैं पु. । (४) पशुसमुदाय को'समज' कहते हैं पु० । (५) पक्षि समुदाय को 'यूथ' कहते हैं पु.नपुं० । (६) पशु भिन्न मनुष्यदेव आदि के समुदाय को समाज' कहते हैं पु०। (७) एक धर्म वाले समुदाय को 'निकाय' कहते हैं पुं० । (८) धान्य आदि के ढेर को 'उत्कर' १ पुञ्ज२ राशि ३ पु०, कूट ४ पु० नपुं० । (९) शुक, तित्तिर, मयूर,कपोत आदि के अपने अपने समुदाय को क्रमशः- शोक, तैत्तिर, मायूर, कापोत आदि कहते हैं नपुं० । (१०) जिन पशु पक्षियों को मनुध्यों के घर में रहने का अभ्यास (आसक्ति) है उन उन मृगपक्षियों को 'छेक' और 'गृह्यक' कहते हैं पु० । !.०॥ इति पशुवर्ग समाप्त ।।००॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
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