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________________ ७४ आराधना कथाकोश और ध्यानाध्ययन करनेके लिये वनमें चले गये, वे प्रसिद्ध महात्मा आत्मसुख प्रदान कर मुझे भी संसार-समुद्रसे पार करें। १२. विष्णुकुमार मुनिकी कथा अनन्त सूख प्रदान करनेवाले जिनभगवान जिनवाणी और जैन साधुओंको नमस्कार कर मैं वात्सल्य अंगके पालन करनेवाले श्री विष्णुकुमार मुनिराजको कथा लिखता हूँ। ____ अवन्तिदेशके अन्तर्गत उज्जयिनी बहुत सुन्दर और प्रसिद्ध नगरी है। जिस समयका यह उपाख्यान है, उस समय उसके राजा श्रीवर्मा थे। वे बडे धर्मात्मा थे, सब शास्त्रोंके अच्छे विद्वान् थे, विचारशील थे, और अच्छे शूरवीर थे। वे दुराचारियोंको उचित दण्ड देते और प्रजाका नीतिके साथ पालन करते । सुतरां प्रजा उनकी बड़ी भक्त थी। उनकी महारानीका नाम था श्रीमती। वह भी विदुषी थी। उस समयकी स्त्रियों में वह प्रधान सुन्दरी समझी जाती थी। उसका हृदय बड़ा दयालु था। वह जिसे दुखी देखती, फिर उसका दुःख दूर करने के लिए जी जानसे प्रयत्न करती। महारानीको सारी प्रजा देवी समझती थी। श्रीवर्माके राजमंत्री चार थे। उनके नाम थे बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद और नमुचि । ये चारों ही धर्मके कट्टर शत्रु थे। इन पापी मंत्रियोंसे युक्त राजा ऐसे जान पड़ते थे मानों जहरीले सर्पसे युक्त जैसे चन्दनका वृक्ष हो। ___ एक दिन ज्ञानी अकम्पनाचार्य देश-विदेशोंमें पर्यटन कर भव्य पुरुषोंको धर्मरूपी अमृतसे सुखी करते हुए उज्जयिनीमें आये। उनके साथ सातसौ मुनियोंका बड़ा भारी संघ था । वे शहर बाहर एक पवित्र स्थानमें ठहरे । अकम्पनाचार्यको निमित्तज्ञानसे उज्जयिनीकी स्थिति अनिष्ट कर जान पड़ी। इसलिए उन्होंने सारे संघसे कह दिया कि देखो, राजा, वगैरह कोई आवे पर आप लोग उनसे वादविवाद न कीजियेगा। नहीं तो सारा संघ बड़े कष्टमें पड़ जायगा, उसपर घोर उपसर्ग आवेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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