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________________ वारिषेण मुनिको कथा आपने तो अपने कर्तव्यका पालन किया है और कर्तव्य पालन करना कोई अपराध नहीं है। मान लीजिये कि यदि आप पुत्र-प्रेमके वश होकर मेरे लिए ऐसे दण्डकी आज्ञा न देते, तो उससे प्रजा क्या समझती ? चाहे मैं अपराधी नहीं भी था तब भी क्या प्रजा इस बातको देखती? वह तो यही समझती कि आपने मुझे अपना पूत्र जानकर छोड़ दिया । पिताजी, आपने बहुत ही बुद्धिमानी और दूरदर्शिताका काम किया है। आपकी नीतिपरायणता देखकर मेरा हृदय आनन्दके समुद्र में लहरें ले रहा है। आपने पवित्र वंशकी आज लाज रख लो। यदि आप ऐसे समयमें अपने कर्तव्यसे जरा भी खिसक जाते, तो सदाके लिए अपने कुलमें कलंकका टीका लग जाता । इसके लिए तो आपको प्रसन्न होना चाहिए न कि दुखी । हाँ इतना जरूर हुआ कि मेरे इस समय पापकर्मका उदय था; इसलिए मैं निरपराधी पोकर भी अपराधी बना । पर इसका मुझे कुछ खेद नहीं। क्योंकिअवश्य ह्यनुभोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् । -वादीभसिंह अर्थात्-जो जैसा कर्म करता है उसका शुभ या अशुभ फल उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है। फिर मेरे लिए कर्मोका फल भोगना कोई नई बात नहीं है। पुत्रके ऐसे उन्नत और उदार विचार सुनकर श्रेणिक बहुत आनन्दित हुए। वे सब दुःख भूल गये। उन्होंने कहा, पुत्र, सत्पुरुषोंने बहुत ठीक लिखा है चंदनं घृष्यमाणं च दह्यमानो यथाऽगुरुः। न याति विक्रियां साधुः पोडितो पि तथापरैः ।। -ब्रह्म नेमिक्त अर्थात्-चन्दनको कितना भी घिसिये, अगुरुको खूब जलाइये, उससे उनका कुछ न बिगड़कर उलटा उनमेंसे अधिक-अधिक सुगन्ध निकलेगी। उसी तरह सत्पुरुषोंको दुष्ट लोग कितना ही सतावें, कितना ही कष्ट दें, पर वे उससे कुछ भी विकारको प्राप्त नहीं होते, सदा शान्त रहते हैं और अपनी बुराई करनेवालेका भी उपकार ही करते हैं। ___ वारिषेणके पुण्यका प्रभाव देखकर विद्युत् चोरको बड़ा भय हुमा । उसने सोचा कि राजाको मेरा हाल मालूम हो जानेसे वे मुझे बहुत कड़ी सजा देंगे। इससे यही अच्छा है कि में स्वयं ही जाकर उनसे सब सच्चा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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