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________________ ६८ आराधना कथाकोश है, विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्र बन जाता है और विपत्ति सम्पत्तिके रूप में परिणत हो जाती है । इसलिए जो लोग सुख चाहते हैं, उन्हें पवित्र कार्यों द्वारा सदा पुण्य उत्पन्न करना चाहिये । जिनभगवान् की पूजा करना, दान देना, व्रत उपवास करना, सदा विचार पवित्र और शुद्ध रखना, परोपकार करना, हिंसा, आदि पापकर्मोंका न करना, ये पुण्य उत्पन्न करनेके कारण हैं । झूठ, चोरी वारिषेणकी यह हालत देखकर सब उसकी जय जयकार करने लगे । देवोंने प्रसन्न होकर उसपर सुगंधित फूलोंकी वर्षा की । नगरवासियों को इस समाचारसे बड़ा आनन्द हुआ । सबने एक स्वरसे कहा कि, वारिषेण तुम धन्य हो, तुम वास्तवमें साधु पुरुष हो, तुम्हारा चारित्र बहुत निर्मल है, तुम जिनभगवान् के सच्चे सेवक हो, तुम पवित्र पुरुष हो, तुम जैनधर्मके सच्चे पालन करनेवाले हो । पुण्य-पुरुष, तुम्हारी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी थोड़ी है। सच है, पुण्यसे क्या नहीं होता ? श्रेणिकने जब इस अलौकिक घटनाका हाल सुना तो उन्हें भी अपने अविचारपर बड़ा पश्चात्ताप हुआ । वे दुःखी होकर बोले ये कुर्वन्ति जडात्मानः कार्यं लोकेऽविचार्य च । ते सीदन्ति महन्तोपि मादृशा अर्थात् - जो मूर्ख लोग आवेशमें आकर बिना विचारे किसी कामको कर बैठते हैं, वे फिर बड़े भी क्यों न हों, उन्हें मेरी तरह दुःख ही उठाने पड़ते हैं । इसलिये चाहे कैसा ही काम क्यों न हो, उसे बड़े विचार के साथ करना चाहिए । दुःखसागरे ॥ - ब्रह्म नेमिदत्त श्रेणिक बहुत कुछ पश्चात्ताप करके पुत्रके पास श्मशान में आये । वारिषेणकी पुण्यमूर्तिको देखते ही उनका हृदय पुत्रप्रेमसे भर आया । उनकी आँखोंसे आँसू बह निकले। उन्होंने पुत्रको छाती से लगाकर रोतेरोते कहा- प्यारे पुत्र, मेरी मूर्खताको क्षमा करो ! मैं क्रोधके मारे अन्धा बन गया था, इसलिए आगे पीछेका कुछ सोच विचार न कर मैंने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया । पुत्र, पश्चात्तापसे मेरा हृदय जल रहा है, उसे अपने क्षमारूप जलसे बुझाओ ! दुःखके समुद्र में मैं गोते खा रहा हूँ, मुझे सहारा देकर निकालो ! Jain Education International अपने पूज्य पिताकी यह हालत देखकर वारिषेणको बड़ा कष्ट हुआ । वह बोला- पिताजी, आप यह क्या कहते हैं ? आप अपराधी कैसे ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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