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________________ ३६ आराधना कथाकोश समझाकर उसने श्रीभूतिके घर फिर भेजा और आप उसके साथ खेलने लगी । अबकी बार रानीका प्रयत्न व्यर्थ नहीं गया । दासीने पहुँचते ही बड़ी घबराहट के साथ कहा- देखो, पहले तुमने रत्न नहीं दिये, उससे उन्हें बहुत कष्ट उठाना पड़ा । अब उन्होंने यह अँगूठी देकर मुझे भेजा है और यह कहलाया है कि यदि तुम्हें मेरी जान प्यारी हो, तो इस अँगूठीको देखते ही रत्नों को दे देना और रत्न प्यारे हों तो न देना । इससे अधिक मैं और कुछ नहीं कहता । अब तो वह एक साथ घबरा गई। उसने उससे कुछ विशेष पूछताछ न करके केवल अँगूठी के भरोसेपर रत्न निकालकर दासीके हाथ सौंप दिये । दासीने रत्नोंको लाकर रानीको दे दिये और रानी ने उन्हें महाराजके पास पहुँचा दिये । इन राजाको रत्न देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने रानीकी बुद्धिमानीको बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने समुद्रदत्तको बुलाया और उन रत्नोंको और बहुतसे रत्नोंमें मिलाकर उससे कहा- देखो, रत्नोंमें तुम्हारे रत्न हैं क्या ? और हों तो उन्हें निकाल लो । समुद्रदत्तने अपने रत्नों को पहचान कर निकाल लिया । सच है बहुत समय बीत जानेपर भी अपनी वस्तुको कोई नहीं भूलता । इसके बाद राजाने श्रीभूतिको राजसभामें बुलाया और रत्नोंको उसके सामने रखकर कहा- कहिये आप तो इस बेचारेके रत्नों को हड़पकर भी उल्टा इसे ही पागल बनाते थे न ? यदि महारानी मुझसे आग्रह न करती और अपनी बुद्धिमानीसे इन रत्नोंको प्राप्त नहीं करती, तब यह बेचारा गरीब तो व्यर्थ मारा जाता और मेरे सिरपर कलंकका टीका लगता । क्या इतने उच्च अधिकारी बनकर मेरी प्रजाका इसी तरह तुमने सर्वस्व हरण किया है ? राजाकी बड़ा क्रोध आया। उसने अपने राज्य के कर्मचारियोंसे पूछा- कहो, इस महापापीको इसके पापका क्या प्रायश्चित दिया जाय, जिससे आगे के लिये सब सावधान हो जायँ और इस दुरात्माका जैसा भयंकर कर्म है, उसीके उपयुक्त इसे उसका प्रायश्चित भी मिल जाय ? राज्यकर्मचारियोंने विचार कर और सबकी सम्मति मिलाकर कहामहाराज, जैसा इन महाशयका नीच कर्म है, उसके योग्य हम तीन दण्ड उपयुक्त समझते हैं और उनमेंसे जो इन्हें पसन्द हो, वही ये स्वीकार करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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