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________________ ४५२ आराधना कथाकाश दुर्लभ मोक्ष सुख भी इसी धर्मकी ही देन है, पुत्री तुम भी, धर्ममें दृढ़ करनेवाले “सौभाग्यवत" को विधि युक्त पालन करो, जिसकी विधि इस प्रकार है। अषाढ़ शुक्ला अष्टमीके दिन स्नानादिसे पवित्र होकर, जिनमन्दिर जाकर, जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति करके, वन्दना करके, इस व्रतको ग्रहण करो, बादमें पांच पान लेकर उनमें पांच-पांच अक्षतपुञ्ज रखकर, एक-एक सुपारी भी रखो व श्री जिनेन्द्र भगवान्की वन्दना करते समय यह मन्त्र पढ़ो "आत्मज्योति, आचार्यज्योति, बन्धुज्योति, बलगज्योति, पुण्यज्योति, पुत्रज्योति, श्री पार्श्वनाथ ज्योति बेलगु रत्नज्योति ।" इस प्रकार प्रतिदिन पाँच-पाँच सौभाग्यवती स्त्रियोंके कुंकुम लगावे, तथा कुकुम, हल्दी, रोली, तंदुल तथा राई के पांच-पाँच ढेर लगाकर प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशीके दिन, एक भुक्ति करे। इस प्रकार यह विधि कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा पर्यन्त करे । पूर्णिमाके दिन महाभिषेक कर (एक कलशसे लेकर १०८ तक ) पाँच भक्ष्य, दूधके बनाकर, २५ नैवेद्य बनाकर, उसमेंसे शास्त्रके ४, गुरुओंके ३, नैवेद्य चढ़ाकर पूजा करे । शास्त्रको वस्त्र चढ़ावे । गुड़की भेली सहित चार स्त्रियों को ४ फल देवे, एक आप लेवे । मुनि-आर्यिकाओंको शास्त्र व वस्त्रादि देवे। चार प्रकार के संघको यथाशक्ति आहारादि दान देवे। व्रतकी विधिको, अत्यन्त आनन्दित हृदयसे, पूर्ण रूपसे मनन कर, व्रत ग्रहण करनेका संकल्प करके धनवती सेठानी घर आ गई और उसने विधिके अनुसार इस व्रतका पालन किया, उद्यापनके उपरान्त उसको पुत्र रत्नकी प्राप्ति हुई । उसका नाम देवकुमार रखा । पुत्र व पति सहित सुखसे काल व्यतीत करते हुए अन्तमें दीक्षा लेकर सेठानी स्वर्ग गई। सच है, यह कुंकुमव्रतकी प्रभावना है। महान् पुण्यका उपार्जन इन व्रतोंका ही प्रभाव है व परम्परा मोक्ष सुख भी इनसे प्राप्त होता है । भव्य जीवोंको व्रत अनुष्ठान भक्ति व पूर्ण श्रद्धाके साथ करना चाहिए, जिससे धनवतीकी तरह सुखी होकर मनुष्य जन्मको सार्थक बना सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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