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________________ करकण्डु राजाकी कथा ४४३ साथ उनकी प्रतिष्ठा करवाई। जब करकण्डुने देखा कि मेरा सांसारिक कर्तव्य सब पूरा हो चुका तब राज्यका सब भार अपने पुत्र वसुपालको सौंप कर और संसार, शरीर, विषय-भोगादि से विरक्त होकर आप अपने माता-पिता तथा और भी कई राजोंके साथ जिनदोक्षा ले योगी हो गया। योगी होकर करकण्डु मुनिने खब तप किया, जो कि निर्दोष और संसारसमुद्रसे पार करनेवाला है। अन्तमें परमात्म-स्मरणमें लीन हो उसने भौतिक शरीर छोड़ा। तपके प्रभावसे उसे सहस्रार स्वर्ग में दिव्य देह मिली। पद्मावतो दन्तिवाहन तथा अन्य राजे भी अपने पुण्य के अनुसार स्वर्गलोक गये। ___ करकण्डुने ग्वालके जन्ममें केवल एक कमलके फूल द्वारा भगवान्की पूजा की थी। उसे उसका जो फल मिला उसे आप सुन चुके हैं । तब जो पवित्र भावपूर्वक आठ द्रव्योंसे भगवानकी पूजा करेंगे उनके सुखका तो फिर पूछना हो क्या? थोड़े में यों समझिए कि जो भव्यजन भक्तिसे भगवान्की प्रतिदिन पूजा किया करते हैं वे सर्वोत्तम-सुख मोक्ष भो प्राप्त कर लेते हैं, तब और सांसारिक सुखोंकी तो उनके सामने गिनतो हो क्या है ? __एक बे-समझ ग्वालने जिन भगवान्के पवित्र चरणोंको एक कमलके फूलसे पूजा की थी, उसके फलसे वह करकण्डु राजा होकर देवों द्वारा पूज्य हुआ। इसलिए सुखकी चाह करनेवाले अन्य भव्यजनोंको भी उचित है कि वे जिन-पूजाको ओर अपने ध्यानको आकर्षित करें। उससे उन्हें मनचाहा सुख मिलेगा। क्योंकि भावोंका पवित्र होना पुण्यका कारण है और भावोंके पवित्र करनेका जिन-पूजा भी एक प्रधान कारण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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