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________________ अभयदानकी कथा ४२३ सुख प्राप्त करते हैं। अधिक क्या कहा जाय किन्तु इसी ज्ञानदान द्वारा वे स्वर्ग या मोक्षका सुख भी प्राप्त कर सकेंगे । अठारह दोष रहित जिन भगवान् के ज्ञानका मनन, चिन्तन करना उच्च सुखका कारण है । मैंने जो यह दानकी कथा लिखी है वह आप लोगोंको तथा मुझे केवलज्ञानके प्राप्त करनेकी सहायक हो । मूलसंघ के सरस्वती गच्छ में भट्टारक मल्लिभूषण हुए। वे रत्नत्रय से युक्त थे | उनके प्रिय शिष्य ब्रह्मचारी नेमिदत्तने यह ज्ञानदानको कथा लिखी है। वह निरन्तर आप लोगोंके संसारको शान्ति करे । अर्थात् जनम, जरा, मरण मिटाकर अनन्त सुखमय मोक्ष प्राप्त कराये । ११२. अभयदानकी कथा मोक्षकी प्राप्ति के लिये जिन भगवान्‌के चरणोंको नमस्कार कर अभय-दान द्वारा फल प्राप्त करनेवालेकी कथा जैनग्रन्थोंके अनुसार यहाँ संक्षेप में लिखी जाती है । भव्यजनों द्वारा भक्ति से पूजी जानेवाली सरस्वती श्रुतज्ञान रूपी महा समुद्र के पार पहुँचाने के लिये नावकी तरह मेरी सहायता करे । परब्रह्म स्वरूप आत्माका निरन्तर ध्यान करनेवाले उन योगियोंको शान्तिके लिए मैं सदा याद करता हूँ, जिनकी केवल भक्तिसे भव्यजन सन्मार्ग लाभ करते हैं, सुखी होते हैं । इस प्रकार मंगलमय जिन भगवान्, जिनवानी और जैन योगियोंका स्मरण कर मैं वसतिदान - अभयदानकी कथा लिखता हूँ । धर्म-प्रचार, धर्मोपदेश, धर्म- क्रिया आदि द्वारा पवित्रता लाभ किये हुए इस भारतवर्ष में मालवा बहुत कालसे प्रसिद्ध और सुन्दर देश है । अपनी सर्वश्रेष्ठ सम्पदा और ऐश्वर्यसे वह ऐसा जान पड़ता है मानों सारे संसारकी लक्ष्मी यहीं आकर इकट्ठी हो गई है। वह सुख देनेवाले बगीचों, प्रकृति- सुन्दर पर्वतों और सरोवरोंकी शोभासे स्वर्गके देवोंको भी अत्यन्त प्यारा है। वे यहाँ आकर मनचाहा सुख लाभ करते हैं । यहाँके स्त्री-पुरुष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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