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________________ ४०६ आराधना कथाकोश पूरे सुखी थे। प्रजाका नीतिके साथ पालन करते हुए वे अपने समयको बड़े आनन्दके साथ बिताते थे। ____ यहाँ एक सात्यकि ब्राह्मण रहता था। इसकी स्त्रीका नाम जंघा था। इसके सत्यभामा नामकी एक लड़की थी। रत्नसंचयपुरके पास बल नामका एक गाँव बसा हुआ था। उसमें धरणीजट नामका ब्राह्मण वेदोंका अच्छा विद्वान् था । अग्नीला इसको स्त्री थी। अग्नीलासे दो लड़के हए । उनके नाम इन्द्रभूति और अग्निभूति थे। इसके यहाँ एक दासी-पुत्र (शूद्र) का लड़का रहता था। उसका नाम कपिल था। धरणोजट जब अपने लड़कोंको वेदादिक पढ़ाया करता, उस समय कपिल भी बड़े ध्यानसे उस पाठको चुपचाप छुपे हुए सुन लिया करता था। भाग्यसे कपिलकी बुद्धि बड़ी तेज थी । सो वह अच्छा विद्वान् हो गया । एक दासीपुत्र भी पढ़-लिखकर महा विद्वान् बन गया, इसका धरणोजटको बड़ा आश्चर्य हुआ। पर सच तो यह है कि बेचारा मनुष्य करे भी क्या, बुद्धि तो कर्मों के अनुसार होती है न ? जब सर्व साधारणमें कपिलके विद्वान् हो जानेकी चर्चा उठी तब धरणीजट पर ब्राह्मण लोग बड़े बिगड़े और उसे डराने लगे कि तूने यह बड़ा भारी अन्याय किया जो दासी-पुत्रको पढ़ाया। इसका फल तुझे बहुत बुरा भोगना पड़ेगा। अपने पर अपने जातीय भाइयोंको इस प्रकार क्रोध उगलते देख धरणीजट बड़ा घबराया । तब डरसे उसने कपिलको अपने घरसे निकाल दिया। कपिल उस गाँवसे निकल रास्तेमें ब्राह्मण बन गया और इसी रूपमें वह रत्नसंचयपुर आ गया। कपिल विद्वान् और सुन्दर था। इसे उस सात्यकि ब्राह्मणने देखा, जिसका कि ऊपर जिकर आ चुका है। इसके गुण रूपको देखकर सात्यकि बहुत प्रसन्न हुआ। उसके मन पर यह बहुत चढ़ गया। तब सात्यकिने इसे ब्राह्मण ही समझ अपनो लड़की सत्यभामाका इसके साथ ब्याह कर दिया। कपिल अनायास इस स्त्री-रत्नको प्राप्त कर सुखसे रहने लगा। राजाने इसके पाण्डित्यको तारोफ सुन इसे अपने यहाँ पुराण कहनेको रख लिया। इस तरह कुछ वर्ष बीते । एक बार सत्यभामा ऋतुमती हुई। सो उस समय भी कपिलने उससे संसर्ग करना चाहा । उसके इस दुराचारको देखकर सत्यभामाको इसके विषयमें सन्देह हो गया। उसने इस पापीको ब्राह्मण न समझ इससे प्रेम करना छोड़ दिया । वह इससे अलग रह दुःखके साथ अपनी जिन्दगी बिताने लगी। इधर धरणोजटके कोई ऐसा पापका उदय आया कि जिससे उसकी सब धन-दौलत बरबाद हो गई। वह भिखारी-सा हो गया। उसे मालूम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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