SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ आराधना कथाकोश भी निकलकर और अनेक देशों और पर्वतोंमें घूमते हुए बनारस आये । उन्होंने यद्यपि बाह्यमें जैनमुनियोंके वेषको छोड़कर कुलिंग धारणकर रक्खा था, पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि उनके हृदयमें सम्यग्दर्शनकी पवित्र ज्योति जगमगा रही थी। इस वेषमें वे ठीक ऐसे जान पड़ते थे, मानों कीचड़से भरा हुआ कान्तिमान् रत्न हो। इसके बाद आचार्य योगलिंग धारणकर शहरमें घूमने लगे। उस समय बनारसके राजा थे शिवकोटी । वे शिवके बड़े भक्त थे। उन्होंने शिवका एक विशाल मन्दिर बनवाया था। वह बहुत सुन्दर था। उसमें प्रतिदिन अनेक प्रकारके व्यंजन शिवकी भेंट चढ़ा करते थे। आचार्यने देखकर सोचा कि यदि किसी तरह अपनी इस मन्दिरमें कुछ दिनोंके लिये स्थिति हो जाय, तो निस्सन्देह अपना रोग शान्त हो सकता है। यह विचार वे कर ही रहे थे कि इतने में पूजारी लोग महादेवकी पूजा करके बाहर आये और उन्होंने एक बड़ी भारी व्यंजनोंको राशि, जो कि शिवकी भेंट चढ़ाई गई थी, लाकर बाहर रख दी। उसे देखकर आचार्यने कहा, क्या आप लोगोंमें ऐसी किसीकी शक्ति नहीं जो महाराजके भेजे हए इस दिव्य भोजनको शिवकी पूजाके बाद शिवको ही खिला सकें? तब उन ब्राह्मणोंने कहा, तो क्या आप अपने में इस भोजनको शिवको खिलानेकी शक्ति रखते हैं ? आचार्यने कहा-हाँ मुझमें ऐसी शक्ति है । सुनकर उन बेचारोंको बड़ा आश्चर्य हआ। उन्होंने उसी समय जाकर यह हाल राजासे कहा-प्रभो ! आज एक योगी आया है। उसकी बातें बड़ी विलक्षण हैं । हमने महादेवकी पूजा करके उनके लिये चढ़ाया हुआ नैवेद्य बाहर लाकर रक्खा, उसे देखकर वह योगी बोला कि-"आश्चर्य है, आप लोग इस महादिव्य भोजनको पूजनके बाद महादेवकौन खिलाकर पीछा उठा ले आते हो ! भला ऐसो पूजासे लाभ ? उसने साथ ही यह भी कहा कि मुझमें ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा यह सब भोजन में महादेवको खिला सकता है। यह कितने खेदकी बात है कि जिसके लिये इतना आयोजन किया जाता है, इतना खचं उठाया जाता है, वह यों ही रह जाय और दूसरे ही उससे लाभ उठावें? यह ठीक नहीं। इसके लिये कुछ प्रबन्ध होना चाहिये, जो जिसके लिये इतना परिश्रम और खर्च उठाया जाता है वही उसका उपयोग भी कर सके।" महाराजको भी इस अभूतपूर्व बातके सुननेसे बड़ा अचंभा हुआ। वे इस विनोदको देखनेके लिये उसी समय अनेक प्रकारके सुन्दर और सुस्वादु पक्वान्न अपने साथ लेकर शिवमन्दिर गये और आचार्यसे बोले-योगि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy