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________________ हरिषेण चक्रवर्तीको कथा ३५७ मदनावलोके सम्बन्धमें एक ज्योतिषोने कहा कि यह कन्या चक्रवर्तीका सर्वोच्च स्त्रीरत्न होगा। और यह सच है कि ज्ञानियोंका कहा कभी झूठा नहीं होता। - जब मदनावलीकी इस भविष्यवाणी की सब ओर खबर पहुंची तो अनेक राजे लोग उसे चाहने लगे। इन्हींमें उदेशका राजा कलकल भी था। उसने मदनावलीके लिये उसके भाईसे मैंगनी की । उसकी यह मँगनी जनमेजयने नहीं स्वीकारी। इससे कलकलको बड़ा ना-गवार गुजारा। उसने रुष्ट होकर जनमेजय पर चढ़ाई कर दी और चम्पापुरीके चारों ओर घेरा डाल दिया। सच है, कामसे अन्धे हुए मनुष्य कौन काम नहीं कर डालते। जनमेजय भी ऐसा डरपोक राजा न था। उसने फौरन ही युद्धस्थलमें आ-डटनेको अपनी सेनाको आज्ञा दी। दोनों ओरके वीर योद्धाओंकी मुठभेड़ हो गई । खूब घमासान युद्ध आरम्भ हुआ। इधर युद्ध छिड़ा और उधर नागवतो अपनी लड़की मदनावलीको साथ ले सुरंगके रास्तेसे निकल भागी । वह इसी शतमन्युके आश्रममें आई। पाठकोंको याद होगा कि यही शतमन्यु नागवतीका पति है। उसने युद्धका सब हाल शतमन्युको कह सुनाया। शतमन्युने तब नागवतो और मदनावलीको अपने आश्रममें ही रख लिया। हरिषेण राजकुमारका ऊपर जिकर आया है। इसका मदनावली पर पहलेसे ही प्रेम था । हरिषेण उसे बहुत चाहता था। यह बात आश्रमवासी तापसियोंको मालूम पड़ जानेसे उन्होंने हरिषेणको आश्रमसे निकाल बाहर कर दिया। हरिषेणको इससे बुरा तो बहुत लगा, पर वह कुछ कर-धर नहीं सकता था । इसलिये लाचार होकर उसे चला जाना ही पड़ा । इसने चलते समय प्रतिज्ञा की कि यदि मेरा इस पवित्र राजकूमारीके साथ ब्याह होगा तो मैं अपने सारे देशमें चार-चार कोसको दूरी पर अच्छे-अच्छे सुन्दर और विशाल जिनमन्दिर बनवाऊँगा, जो पृथ्वीको पवित्र करनेवाले । कहलायेंगे। सच है, उन लोगोंके हृदयमें जिनेन्द्र भगवान्की भक्ति सदा रहा करती है जो स्वर्ग या मोक्षका सुख प्राप्त करनेवाले होते हैं। प्रसिद्ध सिन्धुदेशके सिन्धुतट शहरके राजा सिन्धुनद और रानी सिन्धुमतीके कोई सौ लड़कियाँ थीं। ये सब ही बड़ी सुन्दर थीं। इन लड़कियोंके सम्बन्धमें नैमित्तिकने कहा था कि ये सब राजकुमारियां चक्रवर्ती हरिषेणको स्त्रियाँ होंगी। ये सिन्धुनदी पर स्नान करनेके लिये जायेंगी । इसी समय हरिषेण भी यहीं आ जायगा। तब परस्परको चार आँखें होते ही दोनों ओरसे प्रेमका बीज अंकुरित हो उठेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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