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________________ २२ आराधना कथाकोश आपको पाया । प्रभो ! आप धन्य हैं, संसारमें आपहीका मनुष्य जन्म प्राप्त करना सफल और सुख देनेवाला है । इस प्रकार मदनकेतु सनत्कुमार मुनिराजकी प्रशंसा कर और बड़ी भक्ति के साथ उन्हें बारम्बार नमस्कार कर स्वर्ग में चला गया । इधर सनत्कुमार मुनिराज क्षणक्षण में बढ़ते हुए वैराग्य के साथ अपने चारित्रको क्रमशः उन्नत करने लगे अन्तमें शुक्लध्यानके द्वारा घातिया कर्मोंका नाश कर उन्होंने लोकालोकका प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त किया और इन्द्र धरणेन्द्रादि द्वारा पूज्य हुए । इसके बाद वे संसार दुःखरूपी अग्निसे झुलसते हुए अनेक जीवों को सद्धर्मरूपी अमृतकी वर्षासे शान्त कर उन्हें युक्तिका मार्ग बतलाकर, और अन्तमें अघातिया कर्मोंका भी नाशकर मोक्षमें जा विराजे, जो कभी नाश नहीं होनेवाला है । उन स्वर्ग और मोक्ष सुख देनेवाले श्रीसनत्कुमार केवलीको हम भक्ति और पूजन करते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं । वे हमें भी केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी प्रदान करें । जिस प्रकार सनत्कुमार मुनिराजने सम्यक् चारित्रका उद्योत किया उसी तरह सब भव्य पुरुषों को भी करना उचित है । वह सुखका देनेवाला है । । श्रीमूलसंघ सरस्वतीगच्छ में चारित्रचूडामणी श्रीमल्लिभूषण भट्टारक हुए । सिंहनन्दी मुनि उनके प्रधान शिष्योंमें थे । वे बड़े गुणी थे और सत्पुरुषोंका आत्मकल्याणका मार्ग बतलाते थे । वे मुझे भी संसारसमुद्रसे पार करें । ४. समन्तभद्राचार्यकी कथा संसारके द्वारा पूज्य और सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञानका उद्योत करनेवाले श्रीजिनभगवान्‌को नमस्कारकर श्रीसमन्तभद्राचार्य की पवित्र कथा लिखता हूँ, जो कि सम्यक्चारित्रको प्रकाशक है । भगवान् समन्तभद्रका पवित्र जन्म दक्षिणप्रान्त के अन्तर्गत कांची नामकी नगरी में हुआ था। वे बड़े तत्त्वज्ञानी और न्याय, व्याकरण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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