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________________ सुव्रत मुनिराजको कथा ३५३ ६७ सुव्रत मुनिराजकी कथा देवों द्वारा जिनके पाँव पूजे जाते हैं, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर सुव्रत मुनिराजकी कथा लिखी जाती है। ___ सौराष्ट्र देशकी सुन्दर नगरी द्वारकामें अन्तिम नारायण श्रीकृष्णका जन्म हुआ। श्रीकृष्णकी कई स्त्रियाँ थीं, पर उन सबमें सत्यभामा बड़ी भाग्यवती थी। श्रीकृष्णका सबसे अधिक प्रेम इसी पर था। श्रीकृष्ण अर्धचक्री थे, तीन खण्डके मालिक थे । हजारों राजे महाराजे इनकी सेवामें सदा उपस्थित रहा करते थे। एक दिन श्रीकृष्ण नेमिनाथ भगवान्के दर्शनार्थ समवशरण में जा रहे थे। रास्तेमें इन्होंने तपस्वी श्रीसुव्रत मुनिराजको सरोग दशामें देखा। सारा शरीर उनका रोगसे कष्ट पा रहा था। उनकी यह दशा श्रीकृष्णसे न देखी गई । धर्मप्रेमसे उनका हृदय अस्थिर हो गया। उन्होंने उसी समय एक जीवक नामके प्रसिद्ध वैद्यको बुलाया और मुनिको दिखलाकर औषधिके लिये पूछा। वैद्यके कहे अनुसार सब श्रावकोंके घरोंमें उन्होंने औषधि-मिश्रित लड्डुओंके बनवानेकी सूचना करवा दी । थोड़े ही दिनोंमें इस व्यवस्थासे मुनिको आराम हो गया, सारा शरीर फिर पहले सा सुन्दर हो गया । इस औषधिदानके प्रभावसे श्रीकृष्णके तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध हुआ। सच है, सुखके कारण सुपात्रदानसे संसारमें सत्पुरुषोंको सभी कुछ प्राप्त होता है। निरोग अवस्था में सुव्रत मुनिराजको एक दिन देखकर श्रीकृष्ण बड़े खुश हए। इसलिये कि उन्हें अपने काममें सफलता प्राप्त हई। उनसे उन्होंने पूछा-भगवन्, अब अच्छे तो हैं ? उत्तरमें मुनिराजने कहाराजन्, शरीर स्वभाव हीसे अपवित्र, नाश होनेवाला और क्षण-क्षणमें अनेक अवस्थाओंको बदलनेवाला है, इसमें अच्छा और बुरापन क्या है ? पदार्थोंका जैसा परिवर्तन स्वभाव है उसी प्रकार यह कभी निरोग और कभी सरोग हो जाया करता है । हो, मुझे न इसके रोगी होनेमें खेद है और न निरोग होनेमें हर्ष ! मुझे तो अपने आत्मासे काम, जिसे कि में प्राप्त करनेमें लगा हुआ हूँ और जो मेरा परम कर्तव्य है । सुव्रत योगिराजकी शरीरसे इस प्रकार निस्पहता देखकर श्रीकृष्णको बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने मुनिको नमस्कार कर उनकी बड़ी प्रशंसा की। पर जब मुनिकी यह निस्पृहता जीवक वैद्यके कानोंमें पहुंची तो उन्हें २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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