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________________ ३४८ आराधना कथाकोश श्लोकमें ' 'मसिस्पक्तं एक शब्द है। इसका अर्थ करनेमें वह गल्ती कर गया । उसने इसे 'शालिभक्तं' का विशेषण समझ यह अर्थ किया कि घी, दूध और मसि मिले चावल पंडितजीको खानेको देना। ऐसा ही हुआ। १. श्लोक में 'मसिस्पृक्तं' शब्द है; उससे ग्रन्थकारका क्या मतलब है यह समझमें नहीं आता। पर वह ऐसी जगह प्रयोग किया गया है कि उसे "शालिभक्त" का विशेषण न किये गति ही नहीं है। आराधना कथाकोशकी छन्दोबन्ध भाषा बनानेवाले पंडित बख्तावरमल उक्त श्लोकोंकी भाषा यों करते हैं "सुत वसुमित्र पढ़ाइयो नित्त, गर्गनाम पाठक जो पवित्त । ताको भोजन तंदुल घीव, लिखन हेत मसि देव सदीव ।।" पंडित बख्तावरमलजीने 'मसिस्पृक्त' शब्दका अर्थ किया हैउपाध्यायको लिखनेको स्याही देना । यह उन्होंने कैसे ही किया हो, पर उस शब्दमें ऐसी कोई शक्ति नहीं जिससे कि यह अर्थ किया जा सके। और यदि ग्रन्थकारका भी इसी अर्थसे मतलब हो तो कहना पड़ेगा कि उनकी रचनाशक्ति बड़ी ही शिथिल थी। हमारा यह विश्वास केवल इसी डेढ़ श्लोकसे ही ऐसा नहीं हुआ, किन्तु इतने बड़े ग्रन्थमें जगह-जगह, श्लोकश्लोकमें ऐसी ही शिथिलता देख पड़ती है। हाँ यह कहा जा सकता है कि ग्रन्थकारने इतना बड़ा ग्रंथ बना जरूर लिया, पर हमारे विश्वासके अनुसार उन्हें ग्रंथकी साहित्यसुन्दरता, रचना सुन्दरता आदि बातोंमें बहुत थोड़ी भी सफलता शायद ही प्राप्त हुई हो! इस विषयका एक पृथक् लेख लिखकर हम पाठकोंकी सेवामें उपस्थित करेंगे, जिससे वे हमारे कथनमें कितना तथ्य है, इसका ठीक-ठोक पता पा सकेंगे। २. 'मसि' का अर्थ स्याही प्रसिद्ध है। पं० बख्तावरमलजीने भी स्याही अर्थ किया है । पर ग्रंथकार इसका अर्थ करते हैं- कोयला' ! देखिए मसिघृतं सुभक्तं च दोयते भोजनक्षणे । चूर्णीकृत्य ततोङ्गारं घृतभक्तेन मिश्रितम् ॥ दत्तं तस्मै इति । स्याही काली होती है और कोयला भी काला, शायद इसी रंगकी समानतासे ग्रन्थकारने कोयलेकी जगह मसिका प्रयोग कर दिया होगा? पर है आश्चर्य ! प्रन्थकारने इस श्लोकमें मसि शब्दको अलग लिखा है, पर ऊपरके श्लोकमें आये हुए 'मसिस्पृक्तं' शब्दका ऐसा जुदा अर्थ किसी तरह नहीं किया जा सकता। ग्रन्थकारकी कमजोरीकी हद है, जो उनकी रचना इतनी शिथिल देख पड़ती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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