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________________ अर्थहीन वाक्यको कथा ३४७ जिस प्रकार गुणहीन औषधिसे कोई लाभ नहीं होता, वह शरीरके किसी रोगको नहीं मिटा सकती, उसी तरह अक्षर रहित शास्त्र या मन्त्र वगैरह भी लाभ नहीं पहुंचा सकते। इसलिए बुद्धिमानोंको उचित है कि वे सदा शुद्ध रीतिसे शास्त्राभ्यास करें-उसमें किसी तरहका प्रमाद न करें, जिससे कि हानि होनेकी संभावना है। १४. अर्थहीन वाक्यकी कथा गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण ऐसे पाँचों कल्याणोंमें स्वर्गके देवोंने आकर जिनकी बड़ी भक्तिसे पूजा की, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर अर्थहीन अर्थात् उलटा अर्थ करनेके सम्बन्धको कथा लिखी जाती है। वसुपाल अयोध्याके राजा थे। उनकी रानीका नाम वसुमती था। इनके वसुमित्र नामका एक बुद्धिवान् पुत्र था। वसुपालने अपने पुत्रके लिखने-पढ़नेका भार एक गर्ग नामके विद्वान् पंडितको सौंपकर उज्जैनके राजा वीरदत्त पर चढ़ाई कर दी। कारण वोरदत्त हर समय वसुपालका मानभंग किया करता था। और उनको प्रजाको भी कष्ट दिया करता था । वसुपाल उज्जैन आकर कुछ दिनों तक शहरका घेरा डाले रहे । इस समय उन्होंने अपनी राज्य-व्यवस्थाके सम्बन्धका एक पत्र अयोध्या भेजा। उसीमें अपने पुत्रके बाबत उन्होंने लिखा "पुत्रोध्यापयितव्योसौ वसुमित्रोति सादरम् । शालिभक्तं मसिस्पृक्तं सर्पियुक्तं दिन प्रति ॥ गर्गोपाध्यायकस्योच्चैर्दीयते भोजनाय च ।" इसका भाव यह है-वसुमित्रके पढ़ाने-लिखानेका प्रबन्ध अच्छा करना, कोई त्रुटि न करना और उसके पढ़ानेवाले पंडितजीको खाने-पीनेकी कोई तकलीफ न हो-उन्हें घी, चावल, दूध-भात, वगैरह खानेको दिया करना।" पत्र पहुंचा। बाँचनेवालेने उसे ऐसा ही बांचा । पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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