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________________ ३४० आराधना कथाकोश बड़ा खुश हुआ। उसने तब अपना खास रूप प्रगट किया और राजाको और भी कई विद्याएँ देकर वह अपने घर चला गया। सच है, गुरुओक विनयसे लोगोंको सभी सुन्दर-सुन्दर वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । ___ इस आश्चर्यको देखकर धनसेन, विद्युद्वेगा तथा और भी बहुतसे लोगोंने श्रावक-व्रत स्वीकार किये। विनयका इस प्रकार फल देखकर अन्य भव्यजनोंको भी उचित है कि वे गुरुओंका विनय, भक्ति निर्मल भावोंसे करें। - जो गुरुभक्ति क्षणमात्रमें कठिनसे कठिन कामको पूरा कर देती है वही भक्ति मेरी सब क्रियाओंकी भूषण बने । मैं उन गुरुओंको नमस्कार करता हूँ कि जो संसार-समुद्रसे स्वयं तैरकर पार होते हैं और साथ ही और-और भव्यजनोंको पार करते हैं। जिनके चरणोंकी पूजा देव, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि बड़े-बड़े महापुरुष करते हैं उन जिन भगवान्का, उनके रचे पवित्र शास्त्रोंका और उनके बताये मार्ग पर चलनेवाले मुनिराजोंका जो हृदयसे विनय करते हैं, उनकी भक्ति करते हैं उनके पास कीर्ति, सुन्दरता, उदारता, सुख-सम्पत्ति और ज्ञान-आदि पवित्र गुण अत्यन्त पड़ोसी होकर रहते हैं । अर्थात् विनयके फलसे उन्हें सब गुण प्राप्त होते हैं। ६०. अवग्रह-नियम लेनेवालेकी कथा पुण्यके कारण जिन भगवान्के चरणोंको नमस्कार कर उपधानअवग्रहकी अर्थात् यह काम जबतक न होगा तबतक मैं ऐसी प्रतिज्ञा करता है, इस प्रकारका नियम कर जिसने फल प्राप्त किया, उसकी कथा लिखी जाती है, जो सुख की देनेवाली है। . ___ अहिछत्रपुरके राजा वसुपाल बड़े बुद्धिमान् थे। जैनधर्म पर उनकी बड़ी श्रद्धा थी। उनकी रानीका नाम वसुमती था। वसुमती भी अपने स्वामीके अनुरूप बुद्धिमती और धर्म पर प्रेम करनेवाली थी। वसपालने एक बड़ा ही विशाल और सुन्दर 'सहस्रकूट' नामका जिनमन्दिर बनवाया। उसमें उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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