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________________ ३२४ आराधना कथाकोश और सब अशुभ बन्धके कारण हैं ।" सच है, जिसने जैनधर्मका सच्चा स्वरूप जान लिया वह क्या फिर किसीसे डिगाया जा सकता है ? नहीं । प्रचण्डले प्रचण्ड हवा भी क्यों न चले पर क्या वह मेरुको हिला देगी ? नहीं । जयसेनने इस प्रकार विश्वासको देख सुमतिको बड़ा गुस्सा आया । तब उसने दो आदमियों को इसलिए सावस्ती में भेजा कि वे जयसेनकी हत्या कर आवें । वे दोनों आकर कुछ समय तक सावस्तोमें ठहरे और जयसेनके मार डालने की खोज में लगे रहे, पर उन्हें ऐसा मौका ही न मिल पाया जो वे जयसेनको मार सकें। तब लाचार हो वे वापिस पृथ्वीपुरी आये और सब हाल उन्होंने राजासे कह सुनाया। इससे सुमतिका क्रोध और भी बढ़ गया । उसने तब अपने सब नौकरोंको इकट्ठा कर कहा -- क्या कोई मेरे आदमियोंमें ऐसा भी हिम्मत बहादुर है जो सावस्ती जाकर किसी तरह जयसेनको मार आवे ! उनमेंसे एक हिमारक नामके दुष्टने कहा - हो महाराज, में इस कामको कर सकता हूँ । आप मुझे आज्ञा दें । इसके बाद ही वह राजाज्ञा पाकर सावस्ती आया और यतिवृषभ मुनिराजके पास मायाचारसे जिनदीक्षा लेकर मुनि हो गया । एक दिन जयसेन मुनिराज के दर्शन करनेको आया और अपने नौकरचाकरोंको मन्दिर बाहर ठहरा कर आप मन्दिर में गया । मुनिको नमस्कार कर वह कुछ समय के लिए उनके पास बैठा और उनसे कुशल समाचार पूछकर उसने कुछ धर्म-सम्बन्धी बातचीत की। इसके बाद जब वह चलनेके पहले मुनिराजको ढोक देनेके लिए झुका कि इतने में वह दुष्ट हिमारक जयसेनको मार कर भाग गया। सच है बुद्ध लोग बड़े हो दुष्ट हुआ करते हैं। यह देख मुनि यतिवृषभको बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने सोचा कहीं सारे संघ पर विपत्ति न आये, इसलिए पास ही की भींत पर उन्होंने यह लिखकर, कि "दर्शन या धर्मकी डाहके वश होकर ऐसा काम किया गया है," छुरीसे अपना पेट चीर लिया और स्थिरतासे संन्यास द्वारा मृत्यु प्राप्त कर वे स्वर्ग गये । वीरसेनको जब अपने पिताकी मृत्युका हाल मालूम हुआ तो वह उसी समय दौड़ा हुआ मन्दिर आया । उसे इस प्रकार दिन-दहाड़े किसी साधारण आदमीकी नहीं, किन्तु खास राजा साहबकी हत्या हो जाने और हत्या - कारीका कुछ पता न चलनेका बड़ा ही आश्चर्य हुआ । और जब उसने अपने पिताके पास मुनिको भी मरा पाया तब तो उसके आश्चर्यका कुछ ठिकाना ही न रहा । वह बड़े विचार में पड़ गया। ये हत्याएँ क्यों हुई ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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