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________________ ३१८ आराधना कथाकोश मुझसे कहा कि मैं विष्टामें कीड़ा होऊँगा सो मुझे तू मार डालना और जब मैं उस कोड़ेको मारने जाता हूँ तब वह भोतर हो भीतर घुसने लगता है । मुनिने उसके उत्तरमें देवरतिसे कहा-भाई, जीव गतिसुखी होता है । फिर चाहे वे कितनो ही बुरोसे बुरी जगह भी क्यों न पैदा हो। वह उसीमें अपनेको सुखी मानेगा, वहाँसे कभी मरना पसन्द न करेगा। यही कारण है कि जबतक तुम्हारे पिता जीते थे तबतक उन्हें मनुष्य जीवनसे प्रेम था, उन्होंने न मरनेके लिए यत्न भी किया, पर उन्हें सफलता न मिली । और ऐसी उच्च मनुष्य गतिसे वे मरकर कोड़ा होंगे, सो भो विष्टामें । उसका 'उन्हें बहुत खेद था और इसलिए उन्होंने तुमसे उस अवस्था में मार डालनेको कहा था । पर अब उन्हें वही जगह अत्यन्त प्यारो है, वे मरना पसन्द नहीं करते। इसलिए जब तुम उस कोड़ेको मारने जाते हो तब वह भीतर घुस जाता है। इसमें आश्चर्य और खेद करनेकी कोई बात नहीं। संसारकी स्थिति हो ऐसी है। मुनिराज द्वारा यह मार्मिक उपदेश सुनकर देवरतिको बड़ा वैराग्य हुआ। वह संसारको छोड़कर, इसलिए कि उसमें सार कुछ नहीं है, मुनिपद स्वीकार कर आत्महित साधक योगी हो गया। जिनके वचन पापोंके नाश करनेवाले हैं, सर्वोत्तम हैं और संसारका भ्रमण मिटानेवाले हैं, वे देवों द्वारा पूजे जानेवाले जिन भगवान् मुझे तब तक अपने चरणोंकी सेवाका अधिकार दें जब तक कि मैं कर्मोंका नाश कर मुक्ति प्राप्त न कर लूं। ७८. सुदृष्टि सुनारकी कथा देवों, विद्याधरों, चक्रवतियों, राजों और महाराजों द्वारा पूजा किये जानेवाले जिन भगवान्को नमस्कार कर सुदृष्टि नामक सुनारकी, जो रत्नोंके काममें बड़ा होशियार था कथा लिखी जाती है । उज्जैनके राजा प्रजापाल बड़े प्रजाहितैषी, धर्मात्मा और भगवान्के सच्चे भक्त थे। इनको रानीका नाम सुप्रभा था। सुप्रभा बड़ी सुन्दरी और सतो थी। सच है संसारमें वही रूप और वही सौन्दर्य प्रशंसाके लायक होता है जो शीलसे भूषित हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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