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________________ ३०० आराधना कथाकोश था कि एक महाक्रोधी ब्राह्मण पल भरमें सब छोड़-छाड़ कर योगी बन गया। इसलिये भव्य-जनोंको सत्पुरुषोंकी संगतसे अपनेको,अपनी सन्तानको और अपने कुलको सदा पवित्र करनेका यत्न करते रहना चाहिए । यह सत्संग परम सुखका कारण है। वे कर्मोके जीतनेवाले जिनेन्द्र भगवान् सदा संसारमें रहें, उनका शासन चिरकाल तक जय लाभ करे जो सारे संसारको सुख देनेवाले हैं, सब सन्देहोंके नाश करनेवाले हैं और देवों द्वारा जो पूजा स्तुति किये जाते हैं। तथा दुःसह उपसर्ग आने पर भी जो मेरुको तरह स्थिर रहे और 'जिन्होंने अपना आत्मस्वभाव प्राप्त किया ऐसे गुरुदत्त मुनि तथा मेरे परम गुरु श्रीप्रभाचन्द्राचार्य, ये मुझे आत्मोक सुख प्रदान करें। ७०. चिलात-पुत्रकी कथा केवलज्ञान जिनका प्रकाशमान नेत्र है, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर चिलातपुत्रकी कथा लिखी जाती है। राजगृहके राजा उपश्रेणिक एक बार हवाखोरीके लिए शहर बाहर गए। वे जिस घोड़े पर सवार थे, वह बड़ा दुष्ट था । सो उसने उन्हें एक भयानक वनमें जा छोड़ा। उस वनका मालिक एक यमदंड नामका भोल था। इसके एक लड़की थी। उसका नाम तिलकवती था। वह बड़ी सुन्दरी थी। उपश्रेणिक उसे देखकर कामके बाणोंसे अत्यन्त बींधे गये। उनकी यह दशा देखकर यमदण्डने उनसे कहा-राजाधिराज, यदि आप इससे उत्पन्न होनेवाले पुत्रको राज्यका मालिक बनाना मंजूर करें तो मैं इसे आपके साथ ब्याह सकता हूँ। उपश्रेणिकने यमदण्डकी शर्त मंजूर कर ली। यमदण्डने तब तिलकवतीका ब्याह उनके साथ कर दिया। वे प्रसन्न होकर उसे साथ लिये राजगृह लौट आये। बहुत दिनों तक उन्होंने तिलकवतीके साथ सुख भोगा, आनन्द मनाया । तिलकवतीके एक पुत्र हुआ। इसका नाम चिलात पुत्र रक्खा गया । उपश्रेणिकके पहली रानियोंसे उत्पन्न हुये और भी कई पुत्र थे। यद्यपि राज्य वे तिलकवतीके पुत्रको देनेका संकल्प कर चुके थे, तो भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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