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________________ गुरुदत्त मुनिको कथा और उसने अपने स्वामीको खेत पर न पाया तब मुनिसे पूछा-क्यों साधु महाराज, मेरे स्वामी यहाँसे कहाँ गये हैं ? मुनि चुप रहे, कुछ बोले नहीं । उनसे कुछ उत्तर न पाकर वह घर पर लौट आई। इधर समय पर समय बीतने लगा ब्राह्मण देवता भूखके मारे छट-पटाने लगे पर ब्राह्मणीका अभी तक पता नहीं; यह देख उन्हें बड़ा गुस्सा आया । वे क्रोधसे गुर्राते हुए घर आये और लगे बेचारी ब्राह्मणी पर गालियोंकी बोछार करने ! राँड, मैं तो भूखके मारे मरा जाता हूँ और तेरा अभी तक आनेका ठिकाना ही नहीं ! उस नंगेको पूछकर खेत पर चली आती। बेचारी ब्राह्मणी घबराती हुई बोली-अजी तो इसमें मेरा क्या अपराध था ! मैंने उस साधुसे तुम्हारा ठिकाना पूछा । उसने कुछ न बताया ! तब मैं वापिस घर पर आ गई। ब्राह्मणने दाँत पीसकर कहा-हाँ उस नंगेने तुझे मेरा ठिकाना नहीं बताया ! और मैं तो उससे कह गया था । अच्छा, मैं अभी ही जाकर उसे इसका मजा चखाता हूँ। पाठकोंको याद होगा कि कपिल पहले जन्ममें हि था, और उसे इन्हीं गुरुदत्त मुनिने राज अवस्थामें जलाकर मार डाला था। तब इस हिसाबमें कपिलके वे शत्रु हुए। यदि कपिलको किसी तरह यह जान पड़ता कि ये मेरे शत्रु हैं, तो उस शत्रुताका बदला उसने कभीका ले लिया होता । पर उसे इसके जाननेका न तो कोई जरिया मिला और न था ही। तब उस शत्रुताको जाग्रत करनेके लिए कपिलकी स्त्रीको कपिलके दूसरे खेत पर जानेका हाल जो मुनिने न बताया, यह घटना सहायक हो गई। कपिल गुस्सेसे लाल होता हुआ मुनिके पास पहुँचा। वहाँ बहुतसी सेमलकी रुई पड़ी हुई थी। कपिलने उस रुईसे मुनिको लपेट कर उसमें आग लगा दी। मुनि पर बड़ा उपसर्ग हुआ। पर उसे उन्होंने बड़ी धीरतासे सहा। उस समय शक्लध्यानके बलसे घातिया कर्मों का नाश होकर उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया । देवोंने आकर उन पर फलोंकी वर्षा की, आनन्द मनाया। कपिल ब्राह्मण यह सब देखकर चकित हो गया। उसे तब जान पड़ा कि जिन साधुको मैंने अत्यन्त निर्दयतासे जला डाला उनका कितना माहात्म्य था ! उसे अपनी इस नीचता पर बड़ा हो पछतावा हआ। उसने बड़ी भक्तिसे भगवान्को हाथ जोड़कर अपने अपराधकी उनसे क्षमा माँगी । भगवान्के उपदेशको उसने बड़े चावसे सुना। उसे वह बहुत रुचा भी। वैराग्य पूर्ण भगवान्के उपदेशने उसके हृदय पर गहरा असर किया। वह उसी समय सब छोड़छाड़ कर अपने पापका प्रायश्चित्त करनेके लिये मुनि हो गया। सच है, सत्पुरुषों-महात्माओंकी संगति सुख देनेवालो होती है। यही तो कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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