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________________ विद्युच्चर मुनिकी कथा २९३ ६८. विद्युच्चर मुनिकी कथा सब सुखोंके देनेवाले और संसारमें सर्वोच्च गिने जानेवाले जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर शास्त्रोंके अनुसार विद्युच्चर मुनिको कथा लिखी जाती है। मिथिलापुरके राजा वामरथके राज्यमें इनके समय कोतवालके ओहदे पर एक यमदण्ड नामका मनुष्य नियुक्त था। यहीं एक विद्युच्चर नामका चोर रहता था। यह अपने चोरीके फनमें बड़ा चलता हुआ था। सो यह क्या करता कि दिनमें तो एक कोढ़ीके वेषमें किसी सुनसान मन्दिरमें रहता और ज्यों ही रात होती कि एक सुन्दर मनुष्यका वेष धारण कर खूब मजा-मोज मारता। यही ढंग इसका बहुत दिनोंसे चला आता था । पर इसे कोई पहिचान न सकता था। एक दिन विद्युच्चर राजाके देखतेदेखते खास उन्हींके ही हारको चुरा लाया। पर राजासे तब कुछ भी न बन पड़ा। सुबह उठकर राजाने कोतवालको बुलाकर कहा-देखो, कोई चोर अपनी सुन्दर वेषभूषासे मुझे मुग्ध बनाकर मेरा रत्न-हार उठा ले गया है। इसलिए तुम्हें हिदायत की जाती है कि सात दिनके भीतर उस हारको या उसके चुरा लेजानेवालेको मेरे सामने उपस्थित करो, नहीं तो तुम्हें इसकी पूरी सजा भोगनी पड़ेगी। जान पड़ता है तुम अपने कर्तव्य पालनमें बहुत त्रुटि करते हो। नहीं तो राजमहलमेंसे चोरी हो जाना कोई कम आश्चर्यकी बात नहीं है। 'हुक्म हुजूरका' कहकर कोतवाल चोरके ढंढनेको निकला । उसने सारे शहरकी गली-ची, घर-बार आदि एक-एक करके छान डाला, पर उसे चोरका पता कहीं न चला । ऐसे उसे छह दिन बीत गये। सातवें दिन वह फिर घर बाहर हुआ। चलते-चलते उसकी नजर एक सुनसान मन्दिर पर पड़ी। वह उसके भीतर घुस गया। ' वहाँ उसने एक कोढ़ीको पड़ा पाया । उस कोढोका रंगढंग देखकर कोतवालको कुछ सन्देह हुआ। उसने उससे कुछ बातें-चीतें इस ढंगसे की कि जिससे कोतवाल उसके हृदयका कुछ पता पा सके । यद्यपि उस बातचीतसे कोतवालको जैसी चाहिए थी वेसो सफलता न हुई, पर तब भी उसके पहले शकको सहारा अवश्य मिला। कोतवाल उस कोढ़ी को राजाके पास ले गया और बोला-महाराज, यही आपके हारका चोर है। राजाके पूछने पर उस कोढ़ीने साफ इन्कार कर दिया कि मैं चोर नहीं हूँ। मुझे ये जबरदस्ती पकड़ लाये हैं। राजाने कोतवालकी ओर तब नजर की। कोतवालने फिर भी दृढ़ताके साथ कहा कि महाराज, यही चोर है । इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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