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________________ २६० आराधना कथाकोश चाण्डाल कन्या मरकर व्रतके प्रभावसे चम्पापुरीमें नागशर्मा ब्राह्मणके यहाँ नागश्री नामकी कन्या हुई। एक दिन नागश्रो वनमें नागपूजा करने. को गई थी। पुण्यसे सूर्यमित्र और अग्निभूति मुनि भी विहार करते हुए इस ओर आ गये । उन्हें देखकर नागश्रीके मनमें उनके प्रति अत्यन्त भक्ति हो गई । वह उनके पास गई और हाथ जोड़कर उनके पाँवोंके पास बैठ गई । नागश्रीको देखकर अग्निभूति मुनिके मन में कुछ प्रेमका उदय हुआ। और होना उचित हो था। क्योंकि थी तो वह उनके पूर्वजन्मको भाई न ? अग्निभूति मुनिने इसका कारण अपने गुरुसे पूछा। उन्होंने प्रेम होनेका कारण जो पूर्व जन्मका भात-भाव था, वह बता दिया । तब अग्निभूतिने उसे धर्मका उपदेश किया और सम्यक्त्व तथा पाँच अणुव्रत उसे ग्रहण करवाये। नागश्री व्रत ग्रहण कर जब जाने लगो तब उन्होंने उससे कह दिया कि हाँ, देख बच्ची, तुझसे यदि तेरे पिताजो इन व्रतोंको लेनेके लिए नाराज हों, तो तू हमारे व्रत हमें हो आकर सौंप जाना। सच है, मुनि लोग वास्तव में सच्चे मार्गके दिखानेवाले होते हैं। इसके बाद नागश्री उन मुनिराजोंके भक्तिसे हाथ जोड़कर और प्रसन्न होती हुई अपने घर पर आ गई। नागश्रीके साथकी और-और लड़कियोंने उसके व्रत लेनेकी बातको नागशर्मासे जाकर कह दिया । नागशर्मा तब कुछ क्रोधकासा भाव दिखाकर नागश्रोसे बोला-बच्ची, तू बड़ी भोली है, जो झटसे हरएकके बहकानेमें आ जाती है । भला, तू नहीं जानती कि अपने पवित्र ब्राह्मण-कुलमें उन नंगे मुनियोंके दिये व्रत नहीं लिये जाते। वे अच्छे लोग नहीं होते। इसलिए उनके व्रत तू छोड़ दे। तब नागश्री बोली-तो पिताजी, उन मुनियोंने मुझे आते समय यह कह दिया था कि यदि तुझसे तेरे पिताजी इन व्रतोंको छोड़ देनेके लिए आग्रह करें तो तू पोछे हमारे व्रत हमें हो दे जाना । तब आप चलिए मैं उन्हें उनके व्रत दे आती हूँ। सोमशर्मा नागश्रोका हाथ पकड़े क्रोधसे गुर्राता हुआ मुनियों के पास चला। रास्तेमें नागश्रीने एक जगह कुछ गुलगपाड़ा होता सुना। उस जगह बहुतसे लोग इकट्ठे हो रहे थे और एक मनुष्य उनके बीच में बँधा हुआ पड़ा था। उसे कुछ निर्दयी लोग बड़ी क्रूरतासे मार रहे थे। नागश्रीने उसको यह दशा देखकर सोमशर्मासे पूछापिताजी, बेचारा यह पुरुष इस प्रकार निर्दयतासे क्यों मारा जा रहा है? सोमशर्मा बोला-बच्चो, इस पर एक बनिये के लड़के वरसेनका कुछ रुपया लेना था। उसने इससे अपने रुपयोंका तकादा किया। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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