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________________ दोपायन मुनिको कथा २४१ जायगी। इसके सिवा मद्य-पानसे यदुवंशका समूल नाश होगा, द्वारका द्वोपायन मुनिके सम्बन्धसे जलकर खाक हो जायगी, और बलभद्र, तुम्हारी इस छुरी द्वारा जरत्कुमारके हाथोंसे श्रीकृष्णकी मृत्यु होगी। भगवान्के द्वारा यदुवंश, द्वारका और वासुदेवका भविष्य सुनकर बलभद्र द्वारका आये। उस समय द्वारकामें जितनी शराब थी, उसे उन्होंने गिरनार पर्वतके जंगलों में डलवा दिया। उधर द्वीपायन अपने सम्बन्धसे द्वारकाका भस्म होना सुन मुनि हो गये और द्वारकाको छोड़कर कहीं अन्यत्र चल दिये। मूर्ख लोग न समझकर कुछ यत्न करें, पर भगवान्का कहा कभी झूठा नहीं होता। बलभद्रने शराबको तो फिकग ही दिया था । अब एक छरी और उनके पास रह गई थी, जिसके द्वारा भगवान्ने श्रीकृष्ण की मौत होना बतलाई थी । बलभद्रने उसे भी खूब घिस-घिसाकर समुद्र में फिकवा दिया। कर्मयोगसे उस छुरीको एक मच्छ निगल गया और वही मच्छ फिर एक मल्लाहकी जालमें आ फँसा। उसे मारने पर उसके पेटसे वह छुरी निकली और धीरे-धीरे वह जरत्कुमारके हाथ तक भी पहुंच गई । जरत्कुमारने उसका बाणके लिए फला बनाकर उसे अपने बाण पर लगा लिया। बारह वर्ष हुए नहीं, पर द्वीपायनको अधिक महीनोंका खयाल न रहनेसे बारह वर्ष पूरे हुए समझ वे द्वारकाकी ओर लौट आकर गिरनार पर्वतके पास ही कहीं ठहरे और तपस्या करने लगे। पर तपस्या द्वारा कर्मोंका ऐसा योग कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। एक दिनकी बात है कि द्वीपायन मुनि आतापन योग द्वारा तपस्या कर रहे थे। इसी समय मानों पापकर्मों द्वारा उभारे हुए यादवोंके कुछ लड़के गिरनार पर्वतसे खेलकद कर लौट रहे थे। रास्तेमें इन्हें बहुत जोरकी प्यास लगी। यहाँ तक कि ये बेचैन हो गये । इनके लिए घर आना मुश्किल पड़ गया। आते-आते इन्हें पानीसे भरा एक गढ़ा देख पड़ा। पर वह पानी नहीं था; किन्तु बलभद्रने जो शराब ढुलवा दी थी वही बहकर इस गढ़ेमें इकट्री हो गई थी। इस शराबको ही उन लड़कोंने पानी समझ पी लिया। शराब पीकर थोड़ी देर हुई होगो कि उसने इन पर अपना रंग जमाना शुरू किया। नशेसे ये सुध-बुध भूलकर उन्मत्तकी तरह कूदते-फाँदते आने लगे। रास्ते में इन्होंने द्वीपायन मुनिको ध्यान करते देखा । मुनिकी रक्षाके लिए बलभद्रने उनके चारों ओर एक पत्थरोंका कोटसा बनवा दिया था। एक ओर उसके आने-जानेका दरवाजा था। इन शैतान लड़कोंने मजाकमें आ उस जगहको पत्थरोंसे पूर दिया। सच है, शराब पीनेसे सब सुध-बुध भूलकर बड़ी बुरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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