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________________ २४० आराधना कथाकोश तो क्रोधसे वह भी भर्रा गई। उसके सामने एक मूसला रक्खा था। उस पापिनीने उसे ही उठाकर श्रीकुमारके सिर पर इस जोरसे मारा कि सिर फटकर तत्काल वह भी धराशायी हो गया। अपने भाईकी इस प्रकार हत्या हुई देखकर श्रोषणा दौड़ी हुई और नागदत्ताके हाथसे झटसे मूसला छुड़ाकर उसने उसके सिर पर एक जोरकी मार जमाई, जिससे वह भी अपने कियेकी योग्य सजा पा गई। नागदत्ता मरकर पापके फलसे नरक गई । सच है, पापीको अपना जीवन पापमें हो बिताना पड़ता है। नागदत्ता इसका उदाहरण है। उस दुराचारको धिक्कार, उस कामको धिक्कार, जिसके वश मनुष्य महा पापकर्म कर और फिर उसके फलसे दुर्गतिमें जाता है । इसलिए सत्पुरुषोंको उचित है कि वे जिनेन्द्र भगवान्के उपदेश किये, सबको प्रसन्न करनेवाले और सुख प्राप्तिके साधन ब्रह्मचर्य व्रतका सदा पालन करें। ५२. द्वीपायन मुनिकी कथा संसारके स्वामी और अनन्त सुखोंके देनेवाले श्रीजिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर द्वीपायन मुनिका चरित लिखा जाता है, जैसा पूर्वाचार्योंने उसे लिखा है। सोरठदेशमें द्वारका प्रसिद्ध नगरो है। नेमिनाथ भगवान्का जन्म यहीं हुआ है । इससे यह बड़ो पवित्र समझी जाती है। जिस समयकी यह कथा लिखी जाती है उस समय द्वारकाका राज्य नवमें नारायण बलभद्र और वासुदेव करते थे। एक दिन ये दोनों राज-राजेश्वर गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ भगवान्को पूजा-वन्दना करनेको गये । भगवान्की इन्होंने भक्तिपूर्वक पूजा की और उनका उपदेश सुना । उपदेश सुनकर इन्हें बहुत प्रसन्नता हुई । इसके बाद बलभद्रने भगवान्से पूछा-हे संसारके अकारण बन्धो, हे केवलज्ञानरूपी नेत्रके धारक, हे! तीन जगतके स्वामी हे करुणाके समुद्र और हे लोकालोकके प्रकाशक, कृपाकर कहिए, कि वासुदेवको पुण्यसे जो सम्पत्ति प्राप्त है वह कितने समय तक ठहरेगी? भगवान् बोले-बारह वर्ष पर्यन्त वासुदेवके पास रहकर फिर नष्ट हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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