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________________ गन्धमित्रकी कथा २३३ इन्होंने कल्याणके मार्ग पर लगाया। अपने समयमें धर्मके नाम पर होनेवाली बे-शुमार पशु हिंसाका इन्होंने घोर विरोध कर उसे जड़मूलसे उखाड़ फेंक दिया। इनके समय में अहिंसा धर्मको पुनः स्थापना हुई। अन्तमें ये अघातिया कर्मोंका भी नाश कर परमधाम-मोक्ष चले गये। इसलिये हे आत्मसुखके चाहनेवालों, तुम्हें सच्चे मोक्ष सुखकी यदि चाह है तो तुम सदा हृदयमें जिनभगवान्के पवित्र उपदेशको स्थान दो। यही तुम्हारा कल्याण करेगा। विषयोंकी ओर ले जानेवाले उपदेश, कल्याण-मार्गको ओर नहीं झुका सकते। वे वर्द्धमान-महावीर भगवान् संसारमें सदा जय लाभ करें, उसका पवित्र शासन निरन्तर मिथ्यान्धकारका नाश कर चमकता रहे, जो भगवान् जीवमात्रका हित करनेवाले हैं, ज्ञानके समुद्र हैं, राजों, महाराजों द्वारा पूजा किये जाते हैं और जिनको भक्ति स्वर्गादिका उत्तम सुख देकर अन्तमें अनन्त, अविनाशी मोक्ष-लक्ष्मोसे मिला देती है। ४८. गन्धमित्रकी कथा अनन्त गुण-विराजमान और संसारका हित करनेवाले जिनेंद्र भगवान्को नमस्कार कर गन्धमित्र राजाकी कथा लिखो जाती है, जो घ्राणेन्द्रियके विषयमें फँसकर अपनी जान गँवा बैठा है।। अयोध्याके राजा विजयसेन और रानी विजयवतीके दो पुत्र थे । इनके नाम थे जयसेन और गन्धमित्र। इनमें गन्धमित्र बड़ा लम्पटो था । भौंरेकी तरह नाना प्रकारके फूलोंके सूंघने में वह सदा मस्त रहता था। । इनके पिता विजयसेन एक दिन कोई कारण देखकर संसारसे विरक्त हो गये । इन्होंने अपने बड़े लड़के जयसेनको राज्य देकर और गन्धमित्रको युवराज बनाकर सागरसेन मुनिराजसे योग ले लिया। सच है, जो अच्छे पुरुष होते हैं उनको धर्मकी ओर स्वभाव होसे रुचि होती है । जयसेनके छोटे भाई गन्धमित्रको युवराज पद अच्छा नहीं लगा। इसलिये कि उसकी महत्त्वाकांक्षा राजा होनेकी थी तब उसने राज्यके लोभमें पड़कर अपने बड़े भाईके विरुद्ध षड्यंत्र रचा। कितने ही बड़े-बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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