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________________ २२८ आराधना कथाकोश __ कंसको निरीह प्रजा पर अत्याचार करनेका उपयुक्त प्रायश्चित्त मिल गया। अशान्तिका छत्र भंग होकर फिरसे शान्तिके पवित्र शासनको स्थापना हुई। वासुदेवने उसी समय कंसके पिता उग्रसेनको लाकर पीछा राज्यसिंहासन पर अधिष्ठित किया। इसके बाद ही श्रीकृष्णने जरासन्ध पर चढ़ाई करके उसे भी कंसका रास्ता बतलाया और आप फिर अर्ध. चक्रवर्ती होकर प्रजाका नोतिके साथ शासन करने लगा। यह कथा प्रसंगवश यहाँ संक्षेपमें लिख दी गई है, जिन्हें विस्तारके साथ पढ़ना हो उन्हें हरिवंशपुराणका स्वाध्याय करना चाहिये । जो क्रोधी, मायाचारी, ईर्षा करनेवाले, द्वेष करनेवाले और मानो थे, धर्मके नामसे जिन्हें चिढ़ थी, जो धर्मसे उलटा चलते थे, अत्याचारो थे, जड़बुद्धि थे और खोटे कर्मोंकी जालमें सदा फंसे रहकर कोई पाप करनेसे नहीं डरते थे, ऐसे कितने मनुष्य अपने ही कर्मोसे कालके मुँहमें नहीं पड़े ? अर्थात् कोई बुरा कम करे या अच्छा, कालके हाथ तो सभोको पड़ना हो पड़ता है। पर दोनोंमें विशेषता यह होती है कि एक मरे बाद भी जन साधारणको श्रद्धाका पात्र होता है और सुगति लाभ करता है और दूसरा जीतेजी ही अनेक तरहकी निन्दा, बुराई, तिरस्कार आदि दुर्गुणोंका पात्र बनकर अन्तमें कुगतिमें जाता है। इसलिए जो विचारशील हैं, सुख प्राप्त करना जिनका ध्येय है, उन्हें तो यही उचित है कि वे संसारके दुःखांका नाश कर स्वर्ग या मोक्षका सुख देनेवाले जिनभगवान्का उपदेश किया पवित्र जिनधर्मका सेवन करें। ४५. लक्ष्मीमतीकी कथा जिन जगद्बन्धका ज्ञान लोक और अलोकका प्रकाशित करनेवाला है जिनके ज्ञान द्वारा सब पदार्थ जाने जा सकते हैं, अपने हितके लिए उन जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर मान करने के सम्बन्धको कथा लिखी जाती है। मगधदेशके लक्ष्मी नामके सुन्दर गाँवमें एक सोमशर्मा ब्राह्मण रहता रहता था। इसकी स्त्रीका नाम लक्ष्मीमती था। लक्ष्मीमती सुन्दरी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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