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________________ वशिष्ठ तापसीकी कथा २२३ बाद वे दोनों भक्तिसे मुनिको नमस्कार कर अपने घर लौट आये । सच है, जिनभगवान्के धर्म पर विश्वास करना ही सुखका कारण है । देवकोके जबसे सन्तान होने की सम्भावना हुई। तबसे उसके रहनेका प्रबन्ध कंसके ही महल पर हुआ। कुछ दिनों बाद पवित्रमना देवकीने दो पूत्रोंको एक साथ जना। इसी समय कोई ऐसा पुण्य-योग मिला कि भद्रिलापुरमें श्रुतदृष्टि सेठको स्त्री अलकाके भी पुत्र-युगल हुआ। पर यह युगल मरा हुआ था । सो देवकोके पूत्रोंके पुण्यसे प्रेरित होकर एक देवता इस मत-युगलको उठा कर तो देवकीके पास रख आया और उसके जीते पुत्रोंको अलकाके पास ला रक्खा । सच है, पुण्यवानोंकी देव भी रक्षा करते हैं। इसलिए कहना पड़ेगा कि जिन भगवान्ने जो पुण्यमार्गमें चलनेका उपदेश दिया है वह वास्तव में सुखका कारण है। और पूण्य भगवानकी पूजा करनेसे होता है, दान देनेसे होता है और व्रत, उपवासादि करनेसे होता है। इसलिए इन पवित्र कर्मों द्वारा निरन्तर पुण्य कमाते रहना चाहिए । कंसको देवकीकी प्रसूतिका हाल मालूम होते ही उसने उस मरे हुए पुत्र-युगलको उठा लाकर बड़े जोरसे शिलापर दे मारा । ऐसे पापियोंके जीवनको धिक्कार है। इसी तरह देवकीके जो दो और पुत्र-युगल हुए, उन्हें देवता वहीं अलका सेठानीके यहाँ रख आई और उसके मरे पूत्रयुगलोंको उसने देवकीके पास ला रक्खा। कंसने इन दोनों युगलोंकी भी पहले युगलकी सी दशा को । देवकीके ये छहों पुत्र इसी भवसे मोक्ष जायँगे, इसलिए इनका कोई बाल भो बाँका नहीं कर सकता। ये सुखपूर्वक यहीं रहकर बढ़ने लगे। अब सातवें पुत्रकी प्रसूतिका समय नजदीक आने लगा। अबकी बार देवकीके सातवें महीने में ही पुत्र हो गया। यही शत्रुओंका नाश करनेवाला था, इसलिए वसुदेवको इसको रक्षाको अधिक चिन्ता थी। समय कोई दो तीन बजे रातका था। पानी बरस रहा था। वसुदेव उसे गोदमें लेकर चुपकेसे कंसके महलसे निकल गये। बलभद्रने इस होनहार बच्चे के ऊपर छत्री लगाई। चारों ओर गाढ़ान्धकारके मारे हाथसे हाथ तक भी न देख पड़ता था। पर इस तेजस्वो बालकके पुण्यसे वही देवता, जिसने कि इसके छह भाइयोंकी रक्षा की है, बैलके रूपमें सींगों पर दीया रक्खे आगे-आगे हो चला । आगे चलकर इन्हें शहर बाहर होनेके दरवाजे बन्द मिले, पर भाग्यकी लीला अपरम्पार है। उससे असम्भव भी सम्भव हो जाता है। वहो हुआ। बच्चेके पाँवोंका स्पर्श होते ही दरवाजा भी खुल गया। आगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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