SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० आराधना कथाकोश इसीसे वह पकड़ा गया है। अब उसके साथ मेरी भी आफत आई । वह घबराई और पछताने लगी कि हाय ? मैंने क्यों इस दुष्टको अपने घर लाकर रक्खा ? अब न जाने राजा मेरा क्या हाल करेगा ? जो हो, बेचारी रोती-झींकती राजाके पास गई और अपने साथ उस सन्दुकको भी लिवा ले गई, जिसमें कि कंस निकला था। इसने राजाके सामने होते ही काँपतेकाँपते कहा-दुहाई है महाराजकी ! महाराज, यह पापी मेरा लड़का नहीं है, मैं सच कहती हैं। इस सन्दूक मेंसे यह निकला है। सन्दूकको आप लीजिए और मुझे छोड़ दीजिये। मेरा इसमें कोई अपराध नहीं। मालिन. को इतनी घबराई देखकर राजाको कुछ हँसी-सी आ गई। उसने कहानहीं, इतने डरने-घबरानेकी कोई बात नहीं। मैंने तुम्हें कोई कष्ट देनेको नहीं बुलाया है। बुलाया है सिर्फ कंसकी खरी-खरी हकीकत जाननेके लिये। इसके बाद राजाने सन्दूक उठाकर खोला तो उसमें एक कम्बल और एक अंगठी निकली। अंगठी पर खुदा हआ नाम बाँचकर राजाको कसके सम्बन्धमें अब कोई शंका न रह गई। उसने उसे एक अच्छे राजकुलमें जन्मा समझ उसके साथ अपनी जीवंजसा कुमारीका ब्याह बड़े ठाटबाटसे कर दिया। जरासन्धने उसे अपना राजका कुछ हिस्सा भी दिया। कंस अब राजा हो गया। ___ राजा होनेके साथ ही अब उसे अपनी राज्यसीमा ओर प्रभुत्व बढ़ानेकी महत्त्वाकांक्षा हुई। मथुराके राजा उग्रसेनके साथ उसकी पूर्व जन्मकी शत्रुता है। कंस जानता था कि उग्रसेन मेरे पिता हैं, पर तब भी उन पर वह जला करता है और उसके मनमें सदा यह भावना उठती है कि मैं उग्रसेनसे लड़ और उनका राज्य छोनकर अपनो आशा पूरी करूँ । यही कारण था कि उसने पहली चढ़ाई अपने पिता पर ही की। युद्धमें कंसकी विजय हुई। उसने अपने पिताको एक लोहेके पींजरे में बन्द कर और शहरके दरवाजेके पास उस पीजरेको रखवा दिया। और आप मथुराका राजा बनकर राज्य करने लगा। कंसको इतने पर भी सन्तोष न हुआ सो अपना बैर चुकानेका अच्छा मौका समझ वह उग्रसेनको बहुत कष्ट देने लगा। उन्हें खानेके लिये वह केवल कोदूको रोटियाँ और छाछ देता । पानीके लिए गन्दा पानी और पहरनेके लिए बड़े हो मैले-कुचेले और फटे-पुराने चिथड़े देता । मतलब यह कि उसने एक बड़ेसे बड़े अपराधीकी तरह उनकी दशा कर रक्खी थी। उग्रसेनको इस हालतको देखकर उनके वट्टर दुश्मनकी भी छाती फटकर उसकी आँखोंसे सहानुभूतिके आँसू गिर सकते थे, पर पापी कंसको उनके लिए रत्तीभर भी दया या सहानुभूति नहीं थी । सच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy